लालच - डॉ० उषा पाण्डेय
*लालच*
लालच से रिश्तों में कड़वाहट आ जाता है
लालची मनुष्य शांति से जी नहीं पाता है
संतोष है सबसे बड़ा धन, ऐसा हमारे बुजुर्ग कहते हैं
लालच से मनुष्य अपना ही जीवन दुखमय करते हैं
दुख का कारण क्या है, यक्ष ने युधिष्ठर से प्रश्न किया
लालच दुख का कारण है,
युधिष्ठिर ने उत्तर दिया
लालच का कोई अंत नहीं, यह सुरसा के मुँह जैसा बढ़ता ही जाता है
कभी कभी तो लालच मौत का कारण भी बन जाता है
लालच में आकर मानव जंगल को है काट रहा
ग्लोबल वार्मिंग को निमंत्रण दे रहा, प्रकृति का संतुलन बिगाड़ रहा
मुर्गी रोज एक सोने का अंडा देती थी, यह बात किसान को रास नहीं आई
लालच में आकर मुर्गी का पेट काटा, नही़ंं पाया कोई सोने का अंडा, हाथ मलता रह गया किसान भाई
लालची व्यक्ति अपनी सीमाएं भूल जाता है
लालच में आकर वह गैर कानूनी काम भी कर जाता हूँ
लालच के कारण न जाने कितनी बेटियाँ दहेज की बलि चढ़ गईं
अरमान उनके मर गये, माता पिता को बिलखता छोड़ गईं
लालच को छोड़ो, मेहनत खूब करो
अपना और परिवार का जीवन खुशियों से भरो
मेहनत करने वाले हारते नहीं कभी
ईश्वर पूरी करते हैं उनकी इच्छाएं सभी
डॉ० उषा पाण्डेय
स्वरचित
West Bangal
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