Saturday 17 February 2024

वेलेंटाइन डे - अनन्तराम चौबे अनन्त

 


वेलेंटाइन डे

रोमांस डे कभी किस डे है
कभी चाकलेट डे भी होता है ।
एक फूल देकर इजहार करो
ऐसा वेलेन्टाइन डे भी होता है ।

प्यार करो प्यार दिवस है
प्यार का बस इजहार करो ।
दिल आपस में मिल जाएं
सारा सच तभी प्यार करो ।

दिल मिलने से प्यार होता है
नैन मिले प्यार हो जाता है ।
आंखो आंखों के इशारों में ही
दिल में प्यार भी हो जाता है ।

कैसा है ये प्यार का रिश्ता
दिल से दिल जुड़ जाता है । 
दिल लगता है जब किसी से
सारा सच  हाल बुरा होता है ।

अचानक कोई ऐसा मिलता है
दिल में धड़कन बढ़ा देता है
दोनो के जब दिल मिलते है 
बस वेलेन्टाइन डे हो जाता है ।

दिल से दिल करीब होते है
आपस में दिल मिल जाते है ।
बड़ा अजीब दिल का रिश्ता है
सारा सच दिल के रिश्ते जुड़ते है ।

दो दिल आपस में मिलते है
प्यार तभी तो हो जाता है ।
सूरत दिल में बस जाती है
जीना मुश्किल हो जाता है ।

दिन का चैन छिन जाता है
रातों की नींद उड़ जाती हैं ।
जब प्यार किसी से होता है
वो सूरत आंखों में दिखती है।

प्यार का रिश्ता बड़ा अजीब है
अंजाने ही दो, दिल मिलते है ।
सारा सच दिल का हाल बुरा होता है
हमसफर प्यार के बन जाते है ।

सफर में कोई मिले हमसफर
राहें आसान हो भी जाती है ।
जब प्यार के राही  मिलते है
मंजिल भी प्यार की मिलती है ।

प्यार तो बस प्यार होता है
प्यार से रिश्ता जुड़ जाता है ।
वेलेन्टाइन डे की खुशियों से
दोनों का दिल खुश होता है ।

फूलों का आदान प्रदान
दोनो आपस में करते हैं ।
आज के दिन दो प्रेमी मिल
वेलेंटाइन डे को मनाते हैं ।

   अनन्तराम चौबे अनन्त
    जबलपुर म प्र/

प्रेम करो ऐसा - कवि सुरेंद्र कुमार जोशी

 


प्रेम करो ऐसा

प्रेम करो ऐसा की, 
शबरी को राम मिले । 
प्रेम करो ऐसा की, 
मीरा को घनश्याम मिले । 

प्रेम करो ऐसा की, 
भरत को भगवान की भक्ति मिले । 
प्रेम करो ऐसा की, 
लक्ष्मण जैसा भाई सबको मिले ।

प्रेम करो ऐसा की, 
राधा को कृष्णा मिले । 
प्रेम करो ऐसा की,
माता सीता को राम मिले । 

प्रेम करो ऐसा की, 
घर में सुख शांति मिले । 
प्रेम करो ऐसा की, 
हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा मिले ।

सारा सच के कहने से ही, 
आपस में अब प्रेम बड़े । 
सारा सच के कहने से, 
साहित्य धारा प्रेम बड़े । 

रचना का शीर्षक-
*प्रेम करो ऐसा*

रचना पूर्ण रूप से मौलिक है सत्य एवं प्रमाणित है

कवि सुरेंद्र कुमार जोशी
जिला -देवास /मध्य प्रदेश

प्यार - डॉ० उषा पाण्डेय 'शुभांगी'

 


प्यार

उम्र चाहे कोई भी हो, 
मानव प्यार की चाह रखता है।
प्यार मनुष्य में जीने की इच्छा उत्पन्न करता है।
कहते हैं प्यार किया नहीं जाता, हो जाता है।
प्यार में मानव दिल से मजबूर हो जाता है।
प्यार एक सुखद एहसास है।
जिससे हम प्रेम करते हैं, वह हमारे लिए होता बहुत खास है।
प्यार में मनुज वही करता है जो उसे लगता सही है।
प्यार की गहराई नापने का कोई मापदंड नहीं है।
सच्चा प्यार हर हाल में साथ रहता है। 
अमीरी - गरीबी, ऊंँच - नीच की दीवार इनके पास नहीं फटकता है।
प्यार की खातिर शाहजहांँ ने ताजमहल बनवा दिया।
प्यार की खातिर अनारकली को दीवार में चुनवाया गया।
प्यार क्या होता है,
दशरथ मांझी जी ने बतलाया।
पत्नी की याद में पहाड़ काट राह बनाया, माउंटेन मैन का खिताब पाया।
प्यार सदा सफल हो, यह नहीं जरूरी।
इतिहास गवाह है,
कई प्रेम कहानियाँ
रह गईं अधूरी।
लैला मजनू, शीरीं
फरहाद की हैं ऐसी कहानियाँ।
सच्चे प्रेम की मिसाल हैं ये कहानियाँ।
किसी से सच्चा प्यार करो, तो करो अवश्य इज़हार।
कोई तुमसे सच्चा प्रेम करें तो करो तुम स्वीकार।
हालात कैसे भी हों,
निभाना अपना प्यार।
अपने प्यार के बीच कभी न आने देना अपना अहंकार।
नि: स्वार्थ प्यार किया मीरा ने कृष्ण से, जोगन बन गई।
आहत किया संसार ने पर वह नहीं डिगी।
दुनिया ने कितने दुख दिये,
चुपचाप सहती रही।
कृष्ण प्यार के सागर में मीरा, सदा ही बहती रही।
सच्चा प्यार बड़े भाग्य से मिलता है, उसकी कद्र करो।
जिससे प्यार करो,
उस पर सब न्योछावर करो।
अपने प्रेमी को उसके गुण - दोष के साथ अपनाओ।
प्यार से उसका हाथ थामो, और आगे बढ़
जाओ।
अपने प्रेमी को जाने न दो, अपने से दूर।
उसकी इच्छा को मान दो, प्यार करो उससे भरपूर।

डॉ० उषा पाण्डेय 'शुभांगी'

तोहफा - डॉ० अशोक

 


तोहफा

 भेंट या उपहार है,
दिल का एक उद्गार है।
नवीन जोश में,
दिखती अद्भुत व अलौकिक,
शक्ति और भक्ति का,
खूबसूरत श्रंगार है।

यह अक्षय निधि है,
अपनत्व व विश्वास का,
अनूठा प्रतिनिधि हैं।
सौगात और नजराना है,
उमंग में सराबोर,
खुशियां समेटने में,
मिलता है प्यार का,
सबसे खूबसूरत तराना है।

यह प्यार है,
खुशियां समेटने का,
अद्भुत संसार है।
उम्मीदों पर खरा उतरना,
इसका सबसे उन्नत प्रयास है,
प्रगति और विकास का,
खूबसूरत अहसास है।

यह अपने हमदर्द को,
नज़दीक लाने का,
अनूठा प्रयास है।
 सहजता से सजगता को,
ज्योति देने वाली,
ताकत का अहसास है।

सारा सच है तो यह,
सुखद सन्देश सम्भव है।
इसके अलावा नहीं कहीं,
सबकुछ लगता सम्भव है।
प्रगति और विकास है,
यही वजह है,
समझने की कोशिश कर रहे लोगों का,
सबसे खूबसूरत न्यास है।

डॉ० अशोक, पटना,बिहार।

मोहब्बत - प्रा. गायकवाड विलास

 


मोहब्बत
तुम बिन आधी-अधूरी सी
(छंदमुक्त काव्य रचना)

बिखरे हुए लफ़्ज़ों को जोड़के नज़्म तेरे लिए मैं बनाऊं,
प्यासी निगाहों में तुझे भरके थोड़ा थोड़ा मैं संवर जाऊं।
शृंगार करूं मैं तुम्हारे लिए तुम ही बिंदिया मेरी सजाना,
तुम बिन आधी-अधूरी सी कैसे मैं इस जिंदगी को सजाऊं।

बहती नदियां सी मैं,देखो बह रही हूं पल-पल,
कोमल कलियों सी मैं,देखो झूम यही हूं हर पल।
बिखर न जाऊं कहीं,मन में उठी है तुफानों सी हलचल,
टूटी हूं इंतजार में तेरे और भीगा भीगा है ये आंचल।

उदासियां छाई है मन में,लिए तस्वीर तेरी निगाहों में,
तड़प रही है ये जिंदगी,खड़ी हूं तुम्हारे लिए आंगन में।
आओ मेरे साजन,दुल्हन सी सजी हूं मैं तुम्हारे लिए,
ख्वाब मेरे सजाओ,फूल बनके महक जाऊं मैं जिंदगी में।

कैसे मुस्कुराऊं तुम बिन,रूह भी मेरी मायुसी में डुबी है,
तन्हाई में कटती है रातें,नींदें भी मेरी तुमने छीन ली है।
ज़ख्म दिल के छुपाके,राहें तक रही हूं मैं तुम्हारी,
हंसती हुई ये कली देखो तुम बिन जी रही है अधूरी।

तुम्हें देखने के लिए ही,कबसे तरस रही है ये निगाहें,
सुनी-सुनी जिंदगी में अब बहार बनके तुम आ जाओ।
तुम्हारे बिना पल-पल लग रहा है जैसे बरसों जैसा,
बहारें भी खिल उठी है,अब तो मांग मेरी तुम सजाओं।

बिखरे हुए लफ़्ज़ों को जोड़के,नज़्म तेरे लिए मैं बनाऊं,
प्यासी निगाहों में तुझे भरके थोड़ा थोड़ा मैं संवर जाऊं।
तुम ही मेरी चाहत,तुम ही मेरी आरजू और क्या मांगू मैं,
तुम बिन आधी-अधूरी सी,कैसे मैं इस जिंदगी को सजाऊं - - -

प्रा. गायकवाड विलास
      महाराष्ट्र

Wednesday 14 February 2024

जाओ हे धरती के पुत्र - दिवाकर पाण्डेय 'विभाकर'


 

जाओ हे धरती के पुत्र

नव वधू ने उतार दिया 
अपने गले का मंगलसूत्र
वचनों से मुक्त कर दिया
जाओ हे धरती के पुत्र।

माथे का सिन्दूर पोछकर
भर लिया मिट्टी से माँग
चाह नहीं मुझे कुछ बस
बचा रहे भारत की आन
जाओ है धरती के पुत्र।

तुम वीर हो तुम धीर हो
मेरी चिंता मत करना
चीरना दुश्मनों का सीना
रण से पीछे मत हटना
जाओ हे धरती के पुत्र। 

कटा देना अपना शीश 
तिरंगा नहीं झुकने देना
माँ के सीने पर दुश्मन के
कदम नहीं पड़ने देना
जाओ हे धरती के पुत्र।

बम,गोले, बारूद लहू संग
तुम जाकर होली खेलना
आवश्यकता पड़ी तो अपनी
प्राणों की आहुति दे देना
जाओ हे धरती के पुत्र।

मैं जिलूँगी वीर पति की
विधवा बनकर के सदा
लेकिन मेरे विस्वास पर तुम 
कोई कलंक नहीं लगने देना
जाओ हे धरती के पुत्र।

नाम -दिवाकर पाण्डेय 'विभाकर'
जन्म स्थान-सारण(बिहार)

सम्मान - प्रा रोहिणी डावरे

 


 प्रा.रोहिणी डावरे
                      
रोशन होता मनुज का नाम
करता है वह जब श्रेष्ठ काम
काम की कदर है चारों ओर
खुशियों में हो जाओ सराबोर।१।

समय का जो करें सम्मान
कुदरत होती उसपर मेहरबान
पडे जहाँ उसके कदम
आसमान की ऊँचाइयाँ मिलें हरदम।२।

भावनाओं का करें आदर
होती उसकी हमेशा कदर
जैसे बीज है हमने बोए
फल हमेशा वही हम पाए।३।

शील चरित्र से हो गुणवान
दुनिया देती उसे सम्मान
सारा सच यह चीज है ऐसी
पुनीत पावन गंगाजल जैसी।४।

खुद की शक्ति को पहचान
करें हमेशा आत्मसम्मान
रोशन होगी हर गली और बस्ती
बनेगी तुम्हारी ऐसी हस्ती।५।

हर किसी का हो एक ही सपना
आत्मसम्मान की रक्षा धर्म है अपना
बेचकर सम्मान बढे कमाई
निर्धन इससे बडा है भाई।६।

सच्चा सम्मान वही है होता
पीठ पीछे जो भला ही कहता
कर्म ऐसा करो पवित्र
सुकर्मों का फैले इत्र।७।

बडे बुजुर्गों के है उपकार
कर लो आदर और उनसे प्यार
सभ्यता संस्कृति की है पहचान
अहोभाग्य हमारे करो सम्मान।८।

सारा सच में है ऐसा बल
मेहनत का होता मीठा फल
निभाओ फर्ज और इमानदारी
मुठ्ठी में होगी दुनिया सारी।९।