.विषय अतिथि
रीति सनातन से चली आई
अतिथि देवो भव धर्म हमार ।
करो सत्कार श्रद्धा भक्ति से
आते जब अतिथि द्वार।।
हमारा प्रेम स्नेह देख
आते हैं घर मेहमान।
न करना कभी अनादर
अतिथि होते हैं भगवान।।
बिना प्रयोजन बिना बुलाए
घर अपने जो आ जाए।
प्रसन्नता का इजहार कर
बड़े प्रेम से खुशी जताऐं।।
आदिथ्य स्वीकारे आप हमारा
आप हमारे घर पधारे ।
पुण्यों काउ दय है मेरा
चरण पड़े मेरे द्वारे ।।
इतना सत्कार करो उनका
स्मृति पटल पर याद रहो।
आशीष मिलेगा ह्रदय से
प्रेम भरी तुम बात करो।।
सारा सच यह है कि
ईश्वर रूप अतिथि हमारे।
अआए सदा दर पर मेरे
अहोभाग्य हैं यह हमारे
@पदमा तिवारी दमोह मध्य प्रदेश
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