अंतराष्ट्रीय हिंदी साहित्य प्रतियोगिता"हमारी वाणी"
विषय-- दिवाली
विधा---कविता
सालों साल दीवाली आती।
मन में खुशियां खिलखिलाती।।
घर-आंगन और चौक सजाते,
चित्ताकर्षक झांकी मन भाती।।
धन तेरस को थाल सजाती।
लक्ष्मी पूजे महिला हर्षाती।।
संग गणेश कुबेर की पूजा,
करे आरती महिमा गाती।।
रूप चौदस को रूप निखराते।
सज-धज अच्छा बन दिखाते।।
बने निरोगी रखते स्वस्च्छ्ता,
चेहरे लगते सबके मुस्कुराते।।
अमावस्या कार्तिक की जाना।
दीपावली का पर्व मनाना।।
चारों ओर रोशनी जगमग,
छूटे पटाखें बनते पकवाना।।
बच्चे करते आतिशबाजी।
शोर मचाते होते राजी।।
छुक-छुक रेल चलाता कोई।
कोई बम फोड़े हर्षाता।।
एक दिन बाद प्रतिपदा आते।
अन्नकूट का महोत्सव मनाते।।
गोबर से ग्वाल गोवर्धन बना,
कृष्ण को छप्पन भोग लगाते।
सबके मन में खुशियां छाई।
करते बात मुख मुस्कुराई।।
आनंद की अनुभूति होती।
दीप जले दीवाली आई।।
रामा-स्याम सब करने जाते।
आस-पास के मिलने आते।।
प्रेम भाव का माहौल बनता,
गुड़-धनिया मिठाई खिलाते।।
भाई दूज पर भाई सुध लेते।
बहन को उपहार कुछ देते।।
मंगल कामनाएं की जाती,
लगते परस्पर अच्छे चहेते।।
बेहद सुंदर सी छवि निराली।
दीपों से सजती है दीवाली।।
लगता जँचता जोर नजारा,
सुखदायक दीवाली मतवाली।।
-- डॉ.जबरा राम कंडारा
रानीवाड़ा,जिला-जालोर,राजस्थान।
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