हमारी वाणी की प्रतियोगिता हेतु प्रस्तुत एक स्वरचित रचना :
ग़ज़ल
पिता का कौन समझे ग़म।
पिता हैं सिर्फ.....एटीएम।
हजारों उलझनें पाले,
न देखी आँख उनकी नम।
बहुत अच्छे लगें सबके,
पिता अपने लगे हैं कम।
बहुत लेक्चर पिलाते हैं,
जरूरत जब बताते हम।
खड़े हैं 'ज्ञान' फिर भी वो,
हमारे साथ में हरदम।
ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान'
No comments:
Post a Comment