बाढ़
यह कहर कैसा मानसून का
आ गई आपदा प्रकृति में
उफनकर सरिता बह रही
हलचल मची शहर बस्ती में ।
ले तरंगवेग संग जलमृदा
आया सरिता में उफान
हो भयानक जलमग्न किया
पहाड़ पठार समेत मैदान
हुआ जलप्लावित नगर नगर
नीद उड़ी सब जाग रहे
त्राहि त्राहि मची जन जीवन में
घरवार छोड़ सब भाग रहे ।
बह रही कार, गिर रहे पहाड़
सैलाब मचाए हाहाकार
यह घनघोर विपत्ति कुदरत कहर
है दुःख विपदा जन-जीवन पर।
अब छोड़ व्याख्यान बाढ विपत्ति का
सचेत हो हम लें संज्ञान
तन धन समर्थन कर उनपर
बचाएँ उनका जीवन प्राण ।
इन्दिरा कुमारी
उत्तर प्रदेश
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