**विषय:सुख**
**सुखों की छाया*
***** ** *****
(छंदमुक्त काव्य रचना)
क्या खोया और क्या पाया छोड़ दो तुम,
इस संसार में सब है यहां झूठ और पराया।
धन-दौलत,लालच और मोह-माया की आशा,
इसी की वजह से खत्म होती है वो सुखों की छाया।
धन-दौलत को देखकर अपने भी यहां,
पलभर में ही रंग अपना बदल देते है।
फिर यहां कौन अपना और कौन पराया?
इसी बात को आज तक कौन है यहां समझ पाया।
कभी कुछ खोना है,कभी कुछ पाना है,
कभी हंसना है,कभी यहां सबको रोना है।
ढलेगी रात अंधेरी,आयेगी रोशनी सुनहरी,
ऐसे ही हमें यहां जिंदगी को सजाना है।
खोने के ग़म में तुम सुखों को नज़र अंदाज़ न करना,
जिंदगी के राहों पर होता नहीं सच यहां हर कोई सपना।
सभी के आंगन में यहां होती है सुख दुखों की छांव,
जो मिला है,जितना भी मिला है,वही है इस जीवन में अपना।
कभी होती है पतझड़,कभी आती है बहारें,
जिंदगी के इसी रंगों को समझकर चलना है प्यारे।
जब तक चलती सांसें जी लो जिंदगी सदाबहार,
खोना और पाना यही है गीता का सार ।
कुछ खोया तो भी ग़म न कर जिंदगी में,
कुछ पाया तो घमंड़ न कर अपनी जीत पर।
अच्छे कर्म और नीतियां यही रहेगी संसार में,
कोई भरोसा नहीं सांसों का इस नश्वर जीवन में।
क्या खोया और क्या पाया छोड़ दो तुम,
इस संसार में सब है यहां झूठ और पराया।
धन-दौलत,लालच और मोह-माया की आशा,
इसी की वजह से खत्म होती है वो सुखों की छाया।
प्रा. गायकवाड विलास.
महाराष्ट्र
No comments:
Post a Comment