Friday, 25 April 2025

न्याय/ कानून - अनन्तराम चौबे अनन्त

 


 न्याय/ कानून  - अनन्तराम चौबे अनन्त
https://sarasach.com/?p=502

न्याय, कानून, कोर्ट, फैसला,
वकील बीच में इसके रहते है ।
अन्याय जहां जब भी होता है
न्याय पाने को कोर्ट जाते है ।

कोर्ट कचहरी और थाने में
न्याय मांगने सब जाते हैं ।
न्याय अन्याय के चक्कर में
दोनों पक्ष यहां पर जाते हैं।

न्याय अन्याय के फैसले में
कानून से फैसला होता है ।
वकील कोर्ट में जिरह करते है
गवाह और साक्ष्य रखते हैं ।

सर्वोच्च न्यायालय के जज के 
घर से करोड़ों के नोट जले मिले।
बोरियों ये भरे नोटों को न्याय 
बदलने को किसी से ही मिले ।

अपराधी मामले पुलिस देखती
जांच के वाद रिपोर्ट को लिखती ।
चार्ज सीट जब कोर्ट में जाती
सुनवाई केश की तब है होती ।

कानून तो बस अंधा होता है
साक्ष्य और गवाह मांगता है ।
सच को झूठ और झूठ को सच
वकीलों की जिरह से होता है ।

न्याय पाने के चक्कर में कोर्ट में
दस बीस साल गुजर जाते हैं ।
तारीख पर तारीख कोर्ट से मिलती
समय और पैसा बरवाद होते हैं ।

वकीलों की रोजी रोटी चलती है
हर पेशी में फीस जो मिलती है ।
वकीलों का काम जिरह करना है
मानवता वहां तार तार होती है ।

अपराध और दुष्कर्म के मामले में
महिलाओं की इज्जत लुटती है ।
न्याय को पाने कोर्ट जो जाता
उसकी भी इज्जत लुट जाती है ।

न्याय कानून कोर्ट के फैसले
वकीलों के माध्यम से चलते हैं ।
सारा सच न्याय मिले या न मिले
जीवन तो बर्बाद हो जाते हैं  ।

न्यायालय है न्याय का मंदिर
न्याय पता नहीं कब होता है।
किसको न्याय कब मिलता है
समय का न कुछ पता होता है ।

माध्यम वकील न्याय में होते
जो अपना धंधा करते हैं ।
सारा सच वादी, प्रतिवादी के 
पक्ष में वकील खड़े रहते हैं ।

कौन सच्चा और कौन झूठा है
दोनों पक्ष अपना रखते हैं ।
दोनों जीत का वादा करते
मन मानी फीस जो लेते हैं ।

गारंटी नहीं किसी केश की
हार जीत कब किसकी होगी ।
वकील फीस अपनी लेते हैं
अगली तारीख बढ़ा लेते हैं 

सारा सच फैसले की गारंटी नहीं 
तारीख पर तारीख  ही मिलती है ।
दस बीस साल केश चलते हैं
खर्च की कोई सीमा नहीं होती है ।

   अनन्तराम चौबे अनन्त
    जबलपुर म प्र

राजनीति - डॉ० अशोक

 


 राजनीति - डॉ० अशोक
https://sarasach.com/?cat=21

खुशियां पाने की,
यही जिंदगी है।
सबसे खूबसूरत उपहार है,
इसमें रहती बंदगी है।

खूबसूरत उपहार है,
राजनीति गुणवत्ता का,
भरा-पूरा संसार है।

समर्पण मेहनत जोश से लबरेज रहते हैं लोग यहां,
दुनिया आबाद रहे,
इसी वजह से,
दूसरे लोगों की फ़िक्र रहती है यहां।

सारा सच है तो,
यही जिंदगी बनकर तैयार रहतीं हैं।
उम्मीद बनाएं रखने में,
साथ-साथ दिखने की,
कवायद दिखाई देती है।

राजनीति में दलीय आधार है,
इसकी वजह से ही,
नहीं दिखता सर्वत्र सत्कार है।

यही जिंदगी में खुशियां लेकर आता है,
कुछ हमदर्दी जताते हैं तो कुछ,
बर्बाद कर रहे हुजूम में,
साथ-साथ दिखता है।

राजनीति उत्तम है,
यह बन सकता सर्वोत्तम है।
इसकी खूबियां अनेकों बार,
सामने नज़र आती है।
बड़ी नजदिकियां बढ़ाने में,
इसकी अहमियत दिखाई देती है।

सारा सच के उद्गार में,
तमाम हसरतें पूरी की जा रही है।
साहित्य और संस्कृति को,
मजबूती से यहां आए दिन,
अपनाई जा रही है।

नवीन प्रयास है तो राजनीति,
शिखर पर पहुंचाता है।
उम्मीद बनाएं रखने में,
सबसे पहले खड़ा हो जाता है।

सहर्ष स्वीकार कर,
इसकी अहमियत बढा सकते हैं।
नम्रता और सुचिता से,
इसकी महक फैला सकते हैं।

सारा सच एक साहित्यिक विधा की,
सर्वश्रेष्ठ पालनहार है।
नवीन प्रयास और प्रयोग का,
सबसे खूबसूरत उपहार है।

डॉ० अशोक, पटना,बिहार

राजनीति अर्थात शासन करने के लिए बनाई गई नीति - राज किशोर राय युवी


राजनीति अर्थात शासन करने के लिए बनाई गई नीति - राज किशोर राय युवी

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राजनीति अर्थात शासन करने के लिए बनाई गई नीति। या जनता सेवा के लिए समाज राज्य या फिर किसी भी देश पर शासन करना । जनता के लिए समय –समय पर अवश्यकता अनुसार क़ानून या विभिन्न प्रकार की सरकारी योजनाए  बनाकर आम जनों को राहत प्रदाण करना राजनीति है ।

         पर आज की हलात कुछ और ही है ,राजनीति मतलब चोर ,बदमाश,बाहुबली गन्दे लोगों की जगह ।जहां सिर्फ खुद या  अपनों के लिए ही कार्य किया जाता है । कोई भी योजनाएं क्यों न हो राजनीति करने वाले इन राजनेताओं के परिवारजनो का ही महत्व दिया जाता है । गरीब जनता का हक मारकर खुद खाने वाले ये राजनेताओं ने खुद ही खुद को कलंकित कर दिया है राजनीति को ।अक्सर हम देखते है कि खुद किसी पद पर आसीन ये नेता लोग पैसों की लालच मे अपनी जमीर बेच देते है । सारे उलटे सीधे काम करवाने से भी पीछे नहीं हटते ,बस इनको सिर्फ पैसों और पद से मतलब है और कुछ नहीं । मैं तो यहाँ तक देखा हूँ कि राजनीति के चक्कर मे ये राजनेता लोग चंद पैसों के खातिर बेहद ही गरीबों को भी नहीं छोड़ते ।नीचे से लेकर ऊपर तक सभी बेईमान और रंगदार लोग ही आजकल राजनीति मे दिखेंगे कुछ अपवाद को छोड़ कर ।
कभी सिर्फ समाज सेवा और राष्ट्र सेवा गरीबों के ख्याल रखाने के लिए  राजनीति में पढ़े – लिखे अच्छे लोग आते थे |
ऐसा नहीं है कि राजनीती या राजनेताओं से हमेशा से लोग घृणा करते आए है बल्कि महान क्रांतिकारी सुभाष चन्द्र बोस जी  लोह पुरुष पटेल जी सहित बहुत सारे महान लोगों ने राजनीति में आकर समाज के लिए राष्ट्र के लिए बहुत ही अच्छे कार्य किये । लेकिन समय के साथ–साथ राजनीति करने कि तरीके बदले गए और राजनेता भ्रष्ट होते गए । आज हम युवा वर्ग कदापि नहीं चाहते है कि राजनीति में जाए और यही तो रोना है कि चंद नाम छोड़ दिया जाए तो सारे के सारे राजनेता लोग अपने पथ से भटक गए हैं । और अच्छे राजनेताओं की कमी ने उन्हें और अवसर प्रदान किया है भ्रष्टाचार और मनमानी करने की आज़दी ।पर आम जनता करें तो क्या करें यह एक विकट समस्या है ।

@राज किशोर राय युवी
(मधुबनी. बिहार)🙏🏼

वैदिक सभ्यता संस्कृति में स्त्रियों का स्थान पुरुषों से अधिक - प्रदीप कुमार नायक

 


वैदिक सभ्यता संस्कृति में स्त्रियों का स्थान पुरुषों से अधिक 
                 प्रदीप कुमार नायक 
https://sarasach.com/?p=494

              स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकार 
         आजकल ऐसा रिवाज़ चल पड़ा है, कि स्त्रियां कहती हैं, "हम भी पुरुषों के बराबर हैं। हम भी सब क्षेत्रों में काम करेंगी, और कर भी रही हैं।" यह विचार वैदिक नहीं है। भारतीय सभ्यता संस्कृति का नहीं है। यह विदेशी सभ्यता की देन है।
         वैदिक सभ्यता संस्कृति में तो स्त्रियों का स्थान, पुरुषों से अधिक ऊंचा है। देखिए शास्त्रों में क्या लिखा है, "मातृमान् पितृमान् आचार्यवान् पुरुषो वेद।" अर्थात जिसे तीन उत्तम शिक्षक मिल जाते हैं, धार्मिक विद्वान माता पिता और आचार्य, उस व्यक्ति का कल्याण हो जाता है। देखें, इस वचन में सबसे पहले माता का स्थान है। ऐसा ही और भी बहुत जगह पर लिखा है। "माता, बच्चों के पालन और रक्षा के लिए जितने कष्ट उठाती है, इतने पिता या संसार में कोई भी नहीं उठाता। आदि आदि कारणों से वैदिक शास्त्रों में स्त्रियों का स्थान, पुरुषों से अधिक ऊंचा बताया गया है।" "फिर भी आज की स्त्रियां अपनी अज्ञानता के कारण अपने आप को पुरुषों के बराबर कहना चाहती हैं, अर्थात वे अपना स्थान और सम्मान स्वयं ही खो रही हैं।"
            "विदेशों में स्त्री और पुरुष दोनों नौकरी व्यापार व्यवसाय करते हैं। उन्हीं की नकल भारतीय लोगों ने आरंभ कर दी। जबकि उनकी इस व्यवस्था के दुष्परिणाम नहीं देखे। अंधाधुंध उनकी नकल की। इसलिए अनेक क्षेत्रों में लोगों ने हानियां भी उठाई।"
           कुछ लोगों की सोच यह भी है, कि "हमारी बेटी कल बड़ी होगी, शादी करेगी, ससुराल जाएगी। यदि वहां लड़ाई झगड़ा हो गया, और तलाक हो गया, तो यह अपना जीवन कैसे जीएगी? इसलिए इसको पहले से ही इतना समर्थ बना दें, कि कल यदि तलाक की नौबत आ गई, तो यह अपने पैसे खुद कमा ले, और अपना जीवन गुज़ारा खुद ही कर ले।" अर्थात पहले से ही माता-पिता के मन में यह बात है कि "हमारी बेटी ससुराल जाएगी, झगड़ा करेगी, तलाक करेगी, और फिर जैसे तैसे अपना जीवन जीएगी।" इस प्रकार का चिंतन भी बहुत गलत है। बेटी को यह नहीं सिखाते, कि "ससुराल में सहनशक्ति रखनी है, वही तुम्हारा घर है, तुम्हें वहीं रहना है, वहीं जीवन बिताना है। तलाक करके वापस घर नहीं आना है।" "इसलिए आजकल बेटियों को आर्किटेक्ट कंप्यूटर इंजिनियर सिविल इंजीनियर मैकेनिकल इंजीनियर सी ए, एम बी ए आदि कोर्स पढ़ाते हैं।" यह सोच उचित नहीं है। "क्योंकि जिन क्षेत्रों में स्त्रियां ऐसे कार्य कर रही हैं, वहां पुरुष लोग बेरोजगार हो गए। वे खाली सड़कों पर भटक रहे हैं, उन्हें काम नहीं मिल रहा। क्या यह देश की हानि नहीं हुई?"
        कुछ बेटियों से मैंने पूछा, कि "आप नौकरी व्यापार क्यों करती हैं?" उन्होंने कहा, कि "हमें अपने खर्चों के लिए पुरुषों के आगे हाथ फैलाना पड़ता है। आर्थिक पराधीनता है, इसलिए हम अपने पैसे खुद कमाना चाहती हैं, ताकि आर्थिक स्वतंत्रता बनी रहे।" मैंने उनसे पूछा, "आप पुरुषों के आगे महीने में कितनी बार हाथ फैलाती हैं?" वे बोलीं, "शनिवार रविवार को हमें शॉपिंग करनी होती है, तो महीने में चार बार हमको पुरुषों के आगे हाथ फैलाना पड़ता है।" मैंने कहा, कि "पुरुष तो आपके सामने एक दिन में 10 बार हाथ फैलाते हैं। मुझे नाश्ता दो, मुझे खाना दो, मेरे कपड़े दो, मेरे जूते चप्पल दो, मेरे मोजे नहीं मिल रहे, इत्यादि।" इस प्रकार से पुरुष आपके सामने दिन में 10 बार हाथ फैलाते हैं। उन्होंने तो कभी नहीं कहा, कि "हम खाना खाने के लिए स्त्रियों के आधीन हैं, इसलिए हम अपना खाना खुद बनाएंगे।" "वे महीने में 300 बार स्त्रियों के आगे हाथ फैलाते हैं, उनको कोई शर्म नहीं आती। और आपको महीने में 4 बार हाथ फैलाने में भी शर्म आती है।" "जो पति आपका सब प्रकार से रक्षक पालक पोषक हितकारक और जीवन के सब सुख देने वाला है, उससे धन मांगना आपका अधिकार है। "अपना अधिकार मांगने में शर्म कैसी?" क्योंकि आप भी तो उसके घर की सुरक्षा व्यवस्था आदि के लिए सारा दिन घर में काम करती हैं। वह आपका शत्रु नहीं है, जो कि आपको उससे धन मांगने में शर्म आवे। " ऐसा सोचना चाहिए। "आर्थिक स्वतंत्रता का एक लाभ देखकर 10 प्रकार की हानियां भी तो आपने उठाई!" इसलिए यह कोई बुद्धिमत्ता की बात नहीं है।"
         ज़रा सोचिए, "घर में बड़ों की सेवा करना, बच्चों को जन्म देना, बच्चों का प्रेमपूर्वक पालन पोषण करना, उन्हें सभ्यता सिखाना, उन्हें अच्छे संस्कार देना, घर में सबको बढ़िया भोजन खिलाकर सबके स्वास्थ्य का ध्यान रखना, घर में आए अतिथि की सेवा करना, नौकर चाकर से काम कराना, इत्यादि, ये सब काम वेदों में ईश्वर ने स्त्रियों के लिए ही तो बताए हैं।" 
          और "धन कमाना, दूर-दूर जाना, यात्राएं करना, धक्के खाना, नौकरी व्यापार करना, युद्ध करना, आदि, ये सब भारी भारी काम ईश्वर ने वेदों में पुरुषों के लिए बताए हैं।" "अब स्त्रियों ने पुरुषों वाले काम नौकरी व्यापार आदि आरंभ कर दिए, इससे समाज में अनेक प्रकार का असंतुलन उत्पन्न हो गया, और अनेक समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं।"
          "जो व्यापार नौकरी पुरुष करते थे, अब वे स्त्रियां करने लगी। इससे जितनी स्त्रियां ये पुरुषों वाले काम कर रही हैं, उतने पुरुष बेरोजगार हो गए।" "दूसरी ओर स्त्रियों ने घर से बाहर काम करना शुरु किया, तो उनके घर के काम छूट गए। परिवार बिखर गया। घर का आपसी प्रेम और संगठन टूटने लगा। तलाक की घटनाएं बढ़ने लगी। चरित्रहीनता, और स्त्रियों का अनेक प्रकार से शोषण भी बहुत बढ़ गया। बाहर का और घर का काम अधिक हो जाने से नौकरीपेशा स्त्रियों का स्वास्थ्य भी बिगड़ गया। घर के लोगों को और बच्चों को ठीक समय पर अच्छा पौष्टिक स्वादिष्ट स्वास्थ्यवर्धक भोजन नहीं मिलता। बच्चों को माता का प्रेम नहीं मिलता। उनका स्वास्थ्य भी खराब हो जाता है। नौकर बच्चों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं। बच्चों को तंग करते हैं। उन्हें उत्तम संस्कार नौकर नहीं दे सकते। माताओं ने संस्कार देना बंद कर दिया। नौकरी व्यापार के कारण उनके पास बच्चों की देखभाल करने और उनको एक अच्छा सभ्य नागरिक बनाने का समय ही नहीं है। वे तो नौकरी पर चली गई। परिणाम यह हुआ, कि जब बच्चे बड़े हो गए, तब उन्होंने माता पिता की सेवा नहीं की। क्योंकि बच्चों को ऐसे संस्कार ही नहीं दिए गए। इस में अधिक दोष माता पिता का है। बच्चे भी जवान हो कर स्वार्थी बनकर विदेशों में जाकर अपने पैसे कमाकर खा पी कर अपनी मौज करते हैं। और अपने बूढ़े माता पिता को वृद्धाश्रमों में छोड़ आते हैं। इस प्रकार से चारों ओर दुष्परिणाम है।"
        "यदि आप इन समस्याओं से छूटना चाहते हों, तो वेदों के अनुसार स्त्री और पुरुष अपना अपना कार्य करें। विदेशी लोगों की अंधाधुंध नकल न करें।" वेदों के अनुसार ऋषियों ने बताया है, कि "स्त्रियां घर का काम करें, और पुरुष बाहर का। इसमें ही सबकी सुरक्षा उन्नति और सुख है।"
         "यदि घर में धन कमाने वाला पुरुष न रहे, उसकी मृत्यु हो जाए, या अत्यंत रोगी हो जाए, आदि आदि ऐसी आपात्कालीन परिस्थितियों में भी परिवार के अन्य पुरुष लोग, घर की स्त्रियों का भरण पोषण करें, ऐसा वेदो में विधान है।" "और बिल्कुल अंतिम अवस्था में जब कोई भी धन कमाने वाला पुरुष घर में न हो, केवल तब ही स्त्रियां धन कमा सकती हैं, सामान्य रूप से नहीं।" "तब भी स्त्रियां पहले अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखें, उसके बाद ही धन कमाएं। आजकल कंप्यूटर से घर बैठे भी बहुत सा धन कमाया जा सकता है। उसमें सुरक्षा भी रहती है, और आय भी हो जाती है।"
         एक और स्पष्टीकरण -- "मैं स्त्रियों के पढ़ने-लिखने का विरोधी नहीं हूं। स्त्रियों को खूब पढ़ना चाहिए। क्योंकि इससे बुद्धि का विकास होता है। और घर का प्रबंध व्यवस्था ठीक रखने के लिए बहुत बुद्धि चाहिए। इसलिए स्त्रियों की पढ़ाई लिखाई का उद्देश्य घर की व्यवस्था ठीक चलाना, बुद्धिमत्ता से सब कार्य करना, स्वयं सुखी होना, अपनी सुरक्षा रखना, परिवार को सुख देना इत्यादि होना चाहिए। स्त्रियों की पढ़ाई लिखाई का उद्देश्य धन कमाना मुख्य रूप से नहीं होना चाहिए। तभी समाज का संतुलन ठीक बनेगा।"
            जो महिलाएं आज नौकरी व्यापार आदि करती हैं, वे विचार करें, "क्या उनकी दादी नानी नौकरी करती थी? नहीं। क्या उन्होंने अच्छी प्रकार से घर नहीं चलाया? बहुत अच्छा चलाया। वे आप से कम पढ़ी लिखी थी, फिर भी आप से अधिक अच्छा घर चलाया। इसलिए अपनी पुरानी परंपरा को ही सुरक्षित रखें। वही वेदानुकूल और सुखदायक है। विदेशियों की नकल न करें, और व्यर्थ के कुतर्क लगाकर अपना और समाज का जीवन नष्ट न करें।"
         "समाज में कुछ क्षेत्रों में स्त्रियों को कार्य भी करना चाहिए। वह भी धन कमाने के उद्देश्य से नहीं। बल्कि सब स्त्रियों की सुरक्षा के लिए, अपनी सुरक्षा के लिए, देश के चरित्र की रक्षा के लिए, दुर्घटनाओं को रोकने के लिए, इन उद्देश्यों से स्त्रियों को कुछ क्षेत्रों में काम करना चाहिए। जैसे कि अध्यापन में, चिकित्सा क्षेत्र में, पुलिस में, वकालत में, बैंकों आदि में। राजनीति में भी कुछ स्त्रियों को जाना चाहिए, ताकि वे स्त्रियों की समस्याओं को समझें और इस प्रकार के कानून बना सकें, जो देश की स्त्रियों की सुरक्षा के लिए हों।" "परन्तु सब क्षेत्रों में स्त्रियों को नहीं जाना चाहिए। जैसे रात को होटल में शराब पिलाना, इंजीनियर बनना, आर्किटेक्ट बनना, सेना में युद्ध करने के लिए जाना इत्यादि। वहां उनकी अपनी सुरक्षा को खतरा है।" "जिन कार्यों को पुरुष कर सकते हैं, वह उनका व्यवसाय है, ऐसे कार्यों को स्त्रियां क्यों करें?"
           व्यापारिक कंपनियों में सेक्रेटरी आदि बनकर, जो  स्त्रियां काम करती हैं, वहां उन स्त्रियों का अनेक प्रकार से शोषण ही अधिक होता है। और जो स्त्रियां गुलछर्रे उड़ाने के लिए नौकरी व्यापार करती हैं, उन्हें भी अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखकर संयम रखना चाहिए। इस हेतु से भी नौकरी व्यापार आदि करना अच्छा नहीं है। क्योंकि वहां भी उनकी सुरक्षा को सदा खतरा बना रहता है।" "यदि उन्हें कुछ धन कमाने की इच्छा या शौक हो भी, तो अपने पति के व्यवसाय में एक दो घण्टे सहयोग देकर वे धन कमा सकती हैं। इससे उन का शौक भी पूरा हो जाएगा और उनकी सुरक्षा भी बनी रहेगी।"
           जब स्त्रियां नौकरी व्यापार आदि करने के लिए घर से बाहर निकलती हैं, तब समाज के दुष्ट लोग उन पर अनेक प्रकार के अन्याय अत्याचार शोषण आदि अपराध भी करते हैं। "स्त्रियों के प्रति अत्याचार अन्याय शोषण आदि करने वाले अपराधियों के लिए शासन की ओर से दंड व्यवस्था भी अत्यन्त कठोर होनी चाहिए, तभी अपराधों को रोका जा सकेगा, अन्यथा नहीं।"
         नौकरी व्यापार करने वाली महिलाएं यह समझती हैं, कि "हम अब स्वात्म निर्भर हो गई। जबकि वे अनपढ़ नौकर चाकरों पर निर्भर करती हैं। क्योंकि उनके बिना उनके घर का काम नहीं चल सकता। जो स्त्रियां घर से बाहर नौकरी नहीं करती, घर का काम संभालती हैं, उनको धन आदि के लिए अपने पढ़े-लिखे बुद्धिमान पति पर निर्भर करना पड़ता है। अब आप दोनों की तुलना कर लीजिए, कि कौन सा पक्ष अधिक अच्छा है। "अनपढ़ नौकरों पर निर्भर करना," या "पढ़े-लिखे बुद्धिमान पति पर"!
             इसलिए गंभीरता से चिंतन करें। वैदिक सभ्यता संस्कृति के अनुसार खूब सोच-समझकर निर्णय लेवें। "स्त्रियां सबसे पहले अपनी रक्षा करें, फिर परिवार समाज राष्ट्र की सुरक्षा के लिए भी प्रयास करें। ऐसा करने से सब को सुख मिलेगा, सब की उन्नति होगी, और चरित्र से संबंधित अनेक दुर्घटनाएं भी रुकेंगी।"

न्याय - कंचनमाला अमर

 


न्याय - कंचनमाला अमर 
https://sarasach.com/?p=489

न्याय चेतना तीन तरह की होती है।एक जो हम दूसरों के लिए करते हैं।दूसरा जो हम अपनों के लिए करते हैं ।तीसरा जो हम स्वयं के लिए करते हैं।एक ही अपराध के लिए हम अलग अलग स्थानों और अलग अलग पात्रों के लिए अलग अलग न्याय देते हैं।मानव मनोविज्ञान जितना जटिल कुछ भी नहीं।मानव मनोविज्ञान को समझे तो हमें मालूम चलता है कि मानव से बढ़कर स्वार्थी कोई जीव इस धरा पर नहीं। इसके साथ ही यह भी सत्य है कि इस संसार में  मनुष्य ही एक ऐसा जीव है जो अपने सद्गुणों या अवगुणों को विकसित करके क्रमशः महात्मा या दुरात्मा बन सकते हैं।देव भी बन सकता है और राक्षस भी।यह क्षमता परमात्मा ने इनमें ही दी है ,किसी अन्य जीव में नहीं। अगर मनुष्य मानवता धर्म को अपनाएं।परमात्मा से जुड़ें ताकि तर्कसंगत न्याय करने की क्षमता  में विकसित हो तो औरों के साथ,अपनों के साथ और स्वयं के साथ बिना किसी भेदभाव के समुचित न्याय कर सकता है।जिससे न्याय की भी,न्यायप्रणाली की भी और इंसानियत की भी साख इस दुनिया में बनी रहेगी।साथ ही मानव समाज सुंदर,शांत और विकसित बनेगा क्योंकि अन्याय ही समाज में क्लेश,ईर्ष्या,दुर्भावना जैसी कलुषित भावना को जन्म देती है।

धर्म को अपनाएं,न्याय व्यवस्था को समझे और परिस्थितियों के अनुसार समुचित प्रतिपालन करें।

Tuesday, 22 April 2025

वादे - संजय वर्मा"दृष्टि"

 


वादे - संजय वर्मा"दृष्टि"

https://sarasach.com/?cat=21

काश तुम जिंदा होती
सपने अधूरे वादे अधूरे
सब बात अधूरी
साथ अधूरा
सपने परेशान करते
यादों को बार बार दोहराते
नींद से उठ बैठता
गला सूखने पर
मांगता था पानी
अब खुद उठ कर पीता हूं पानी
काश तुम जीवित होती
बीमारी में मुझे छोड़कर न जाती
तुम बिन सब अधूरे
वादे अधूरे
अगले जन्म में होगी साथ
काश यही तो है
विश्वास
वादे होंगे पूरे।

संजय वर्मा"दृष्टि"

बादल और चांदनी - ऋचा गिरि


बादल और चांदनी - ऋचा गिरि
https://sarasach.com/?p=480

कल बादल को चलते देखा 
आँगन से शाम ढलते देखा 
चांदनी से आंख मिचौली खेल 
फिर जल्दी जल्दी चलते देखा 

पल आँखों से ओझल हो 
दूर जा भेष बदलते देखा 
तारे गवाही दे रहे थे की 
आप आप मे खलते देखा 

चाँदनी से विरह होने का 
शायद उसको गम था  
हां, फिर वह जा कर रोया
तोड़ा जो वो वचन था

विकल चांदनी सोच रही 
क्या कोई प्रणय,कम था 
कहा गया वो कैसा होगा 
या और कोई हमदम था

 चांदनी निकल गई और,पूछा
 क्या मेघदूत को फिरते देखा
 सहस्त्र फूट ऊंचाई पर,जा 
 गरज गरज कर घिरते देखा

 समझ गई चांदनी मेघ की लीला
 जब इस विरह को सहते देखा 
 छोटी वेदना बड़ा था गौरव 
 जब कर्म पथ पर चलते देखा

-ऋचा गिरि
दिल्ली

Saturday, 19 April 2025

कर - डॉ० अशोक


कर - डॉ० अशोक
https://sarasach.com/?p=478

कर की श्रद्धा से ही,
वतनकी तरक्की होती है।
सुन्दर संस्कार में,
समृद्धि बढ़ती।

कर की राशि ही,
समृद्धि और शान है।
नम्रता से कहा जाता है तो,
यही राष्ट्रीय पहचान है।

तरक्की में मददगार है,
संयुक्त आभार है ।
ज्ञान विज्ञान में,
इसकी अद्भुत आन-बान और शान है।

हमेशा कुछ न कुछ करके आगे बढ़ने में,
इसकी वजह है अद्भुत।
समस्याएं अनन्त है,
यही कहलाता जीवन्त है।

सारा सच है तो ज़िन्दगी की बारिकियों को,
समझने में वक्त नहीं लगता है।
कर की हमें आगे बढ़ाने में राशि ही,
सम्पन्नता की जरूरत है,
यही देश की बढ़ती ताकत का,
यही उल्लास दिखता है।

सारा सच में ही,
अद्भुत विचार है।
कर की राशि से ही,
होती देश का उद्धार है।

कर देना एक व्यक्तिगत संस्कार है,
देशहित में,
इसकी वजह से ही,
सबसे खूबसूरत उपहार है।

यह ईमान है,
देशहित में सबसे बड़ा योगदान है।
समस्याएं अनगिनत है,
कर की संग्रहित राशि में,
बहुत आन-बान और शान है।

मजबूत वैश्विक सोच है तो,
कर की राशि बढ़ानी चाहिए यहां।
उम्मीद बंधी हुई रहती है,
कर की हमेशा जरूरत रहती है यहां।

सारा सच की सोहबत में,
यही जिंदगी बनाती है।
राष्ट्रीय तरक्की में,
आगे- आगे क़दम बढाते हुए,
तरक्की में आगे बढ़ाती है।

सारा सच की बेजोड़ धार में,
सम्बल राष्ट्रीय धरोहर बनाने की कोशिश की जाती है।
इनकी पहल पर,
खरा उतरने की हमेशा,
मन से आगे बढ़ने की,
तरकीब खोजने में,
पहली कतार में खडी हो जाती है।

डॉ ०अशोक,पटना,बिहार

राशि, शुल्क, टेक्स,कर - अनन्तराम चौबे अनन्त


राशि, शुल्क, टेक्स,कर - अनन्तराम चौबे अनन्त
https://sarasach.com/?p=476

आयात शुल्क,दर,कर टैक्स 
मूल्य राशि पैसों के रूप है ।
राशि रुपया पैसों को देखो
अलग अलग चलते रुप में हैं ।

राशि जिसके पास में हों
धनवान वही कहलाता है ।
करोड़पति अरबपति ही
बड़ा आदमी कहा जाता है ।

पैसा (राशि) तेरे नाम हैं कितने
कई नामों से जाना जाता है ।
नौकरी से जो राशि मिलती है
वेतन उसको कहा जाता है ।

रिटायर के बाद जो मिलता
पेंशन की राशि कहलाती है ।
मंदिर में जो दिया जाय वो
उसको चढ़ावा कहा जाता है।

स्कूल में पढ़ने राशि दी जाये
स्कूल फीस उसको कहते हैं ।
आश्रम में जो राशि देते हैं
दान देना उसको कहते हैं ।

अपहरणकर्ता जो राशि मांगते
फिरौती की रकम उसे कहते हैं।
अवैध रूप से पैसा जो मांगे
रिश्वत का पैसा उसको कहते हैं।

लड़की की शादी में जो देते हैं
दहेज का राशि उसे कहते हैं ।
तलाक देने पर जो पैसा मिलता
गुजारा भत्ता उसको कहते हैं ।

सारा सच आप किसी को देते हैं
कर्ज की राशि उसे कहते हैं।
अदालत में जो पैसा भरते
सच जुर्माना उसको कहते हैं ।

सरकार जो राशि लेती है
टैक्स का राशि उसको कहते हैं ।
बैंक जो पैसा हमको देती है
ऋण की राशि उसको कहते हैं ।

उद्योगपति, नेताओं को
करोड़ों की राशि जो देते हैं ।
पार्टी के नाम से जो पैसा देते
चंदा की राशि उसको कहते हैं ।

सारा सच पैसों के रूप निराले
बस अपना रुप बदलते हैं ।
जिस मद की जो राशि होती 
सारा सच उसी रुप में नाम लेते हैं ।

   अनन्तराम चौबे अनन्त
    जबलपुर म प्र

सवाल जेब का - डाॅ० योगेश सिंह धाकरे "चातक"


सवाल जेब का - डाॅ० योगेश सिंह धाकरे "चातक" 
https://sarasach.com/?p=473

ट्रम्प साहब का, टैरिफ़ टैरर, 
विरोध करने मै ड़र लगता है ।
निर्मला जी सीख लो चीन से
भिड़ने का दम तो रखता है ।

ताई  तेरा  कोड़ा तो....मात्र
अपने निवेशको पर चला है ।
लहूलुहान शेयर बाजार तो
पिछले छह माह से खड़ा है ।

ट्रम्प चचा , राष्ट्रपति कम,
आपरेटर नजर आ रहे है ।
शेयर मार्केट को गिरा के,
अगले ही पल उठा रहें है ।

पक्का बिजनैशमेन है वो,
विजनैश साधारण करेगा ?
पैसा मस्क को भी चाहियें,
धंधा वो असाधारण करेगा ?

चकरघन्नी बना के चवन्नी को
रुपये मै चला कर ले गया वो ।
टैरिफ़ वार मै ऐसा फँसाया कि
आँख से काजल चुरा ले गया वो ।।

——————————————
स्वरचित....
डाॅ० योगेश सिंह धाकरे "चातक"
{ओज कवि} आलीराजपुर  म.प्र.

दुनिया भर में टैरिफ से खलबली मची

 


दुनिया भर में  टैरिफ से खलबली मची
https://sarasach.com/?p=470

राष्ट्रपति ट्रंप ने 2 अप्रैल को पारस्परिक टैरिफ लगाने की घोषणा की थी। इसके तहत अमेरिका मे आयात होने वाले सभी सामान पर 10% बेसलाइट टैरिफ 5 अप्रैल से प्रभावित हो गया था । इसके अतिरिक्त विभिन्न देशों पर अलग-अलग टैरिफ की घोषणा की गई । 7 अप्रैल को दुनिया भर के शेयर बाजारों में हड़कंप मच गया ,अमेरिका शेयर बाजार भी खुलते ही करीब 4% तक लुढ़क गए राष्ट्रपति  Trump का एक बयान सामने आया ,उन्होंने कहा “कभी-कभी किसी चीज को ठीक करने के लिए कड़वी दवाई लेना पड़ती है “उन्होंने कहा कि हम नहीं चाहते हैं कि दुनिया भर में के बाजारों में गिरावट आए, लेकिन में इसे लेकर चिंतित नहीं हूं ,यहाँ सभी जानते हैं– कि “हम सही हैं “इसके अतिरिक्त अमेरिका का दबदबा बढ़ेगा और अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। दूसरी यह संभावना व्यक्त की गई की क्या राष्ट्रपति ट्रंप झुकेंगे इसमें एक संभावना यह है कि शेयर बाजारों में भारी गिरावट के बाद अमेरिका राष्ट्रपति ट्रंप टैरिफ कम करने के लिए मजबूर होगे ,दूसरी ओर संभावना यह है अमेरिका को वियतनाम या कंबोडिया जैसे कुछ देशों से रियायतें मिल सकते है ,इसके बाद टैरिफ कम घोषणा ट्रंप कर सकते तीसरी संभावना यह है –कि अमेरिकी कांग्रेस टैरिफ पर व्हाइट हाउस को दी गई शक्ति वापस लेने का कदम उठा सकती हैं। 
     अन्य दृष्टि से पांच बड़े कारण और हैं जिसमें टैरिफ वार शुरू हुआ, दूसरा मंदी के हाथ, तीसरा कमोडिटी की कीमत लुढकी चौथा ब्याज दर घटने की आशंका  पांचवा सेक्टोरोल इंडेक्स में गिरावट इन कारण से टैरिफ की ओर ध्यान गया। 
   ट्रंप टैरिफ 9 अप्रैल से लागू होते ही दुनिया भर में के शेयर बाजारों में गिरावट रही । एशियाई बाजार में सबसे अधिक गिरावट रही थी। टैरिफ टेरर पर ट्रंप को करारा जवाब मिला ।अमेरिका के 104 प्रतिशत टैरिफ के जवाब में चीन ने उसे पर टैरिफ बढाकर  84% कर दिया, इसके पहले चीन ने अमेरिका पर 34% प्रेरित लगाया था, 9 अप्रैल को 50% का इजाफा कर दिया, नई दरे 10 अप्रैल से लागू होने का  ऐलान किया गया। वैसे तो चीन- अमेरिका में ट्रेड वॉर पहले से चल रहा था ,अब यह हदें पार कर चुका है । ट्रंप को उम्मीद नहीं थी, कि चीन इतने आक्रामक तरीके से जवाब देगा । इस तरह दोनों देशों के व्यवहार पर कई संगठनों की प्रतिक्रिया अलग-अलग तरीके से हुई। भारत में यह कहा है कि यह युद्ध जैसी स्थिति है अब देखना ही है कि अमेरिका ने चीन के जिन प्रोडक्ट पर टैरिफ लगाया है। क्या वह भारत उसका विकल्प बन सकता है? हमें ऐसे प्रोडक्ट पहचानने होंगे ।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 15 अप्रैल,मंगलवार को एक इंटरव्यू में दावा किया कि अमेरिका अपनी नई टैरिफ नीति से इतना अधिक राजस्व कमा सकता है कि वह इनकम टैक्स की जरूरत को खत्म कर सकता है।

Dr B R Nalwaya
MP

वैदिक सभ्यता संस्कृति में स्त्रियों का स्थान पुरुषों से अधिक - प्रदीप कुमार नायक

 


वैदिक सभ्यता संस्कृति में स्त्रियों का स्थान पुरुषों से अधिक - प्रदीप कुमार नायक 
https://sarasach.com/?p=468

              स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकार 
         आजकल ऐसा रिवाज़ चल पड़ा है, कि स्त्रियां कहती हैं, "हम भी पुरुषों के बराबर हैं। हम भी सब क्षेत्रों में काम करेंगी, और कर भी रही हैं।" यह विचार वैदिक नहीं है। भारतीय सभ्यता संस्कृति का नहीं है। यह विदेशी सभ्यता की देन है।
         वैदिक सभ्यता संस्कृति में तो स्त्रियों का स्थान, पुरुषों से अधिक ऊंचा है। देखिए शास्त्रों में क्या लिखा है, "मातृमान् पितृमान् आचार्यवान् पुरुषो वेद।" अर्थात जिसे तीन उत्तम शिक्षक मिल जाते हैं, धार्मिक विद्वान माता पिता और आचार्य, उस व्यक्ति का कल्याण हो जाता है। देखें, इस वचन में सबसे पहले माता का स्थान है। ऐसा ही और भी बहुत जगह पर लिखा है। "माता, बच्चों के पालन और रक्षा के लिए जितने कष्ट उठाती है, इतने पिता या संसार में कोई भी नहीं उठाता। आदि आदि कारणों से वैदिक शास्त्रों में स्त्रियों का स्थान, पुरुषों से अधिक ऊंचा बताया गया है।" "फिर भी आज की स्त्रियां अपनी अज्ञानता के कारण अपने आप को पुरुषों के बराबर कहना चाहती हैं, अर्थात वे अपना स्थान और सम्मान स्वयं ही खो रही हैं।"
            "विदेशों में स्त्री और पुरुष दोनों नौकरी व्यापार व्यवसाय करते हैं। उन्हीं की नकल भारतीय लोगों ने आरंभ कर दी। जबकि उनकी इस व्यवस्था के दुष्परिणाम नहीं देखे। अंधाधुंध उनकी नकल की। इसलिए अनेक क्षेत्रों में लोगों ने हानियां भी उठाई।"
           कुछ लोगों की सोच यह भी है, कि "हमारी बेटी कल बड़ी होगी, शादी करेगी, ससुराल जाएगी। यदि वहां लड़ाई झगड़ा हो गया, और तलाक हो गया, तो यह अपना जीवन कैसे जीएगी? इसलिए इसको पहले से ही इतना समर्थ बना दें, कि कल यदि तलाक की नौबत आ गई, तो यह अपने पैसे खुद कमा ले, और अपना जीवन गुज़ारा खुद ही कर ले।" अर्थात पहले से ही माता-पिता के मन में यह बात है कि "हमारी बेटी ससुराल जाएगी, झगड़ा करेगी, तलाक करेगी, और फिर जैसे तैसे अपना जीवन जीएगी।" इस प्रकार का चिंतन भी बहुत गलत है। बेटी को यह नहीं सिखाते, कि "ससुराल में सहनशक्ति रखनी है, वही तुम्हारा घर है, तुम्हें वहीं रहना है, वहीं जीवन बिताना है। तलाक करके वापस घर नहीं आना है।" "इसलिए आजकल बेटियों को आर्किटेक्ट कंप्यूटर इंजिनियर सिविल इंजीनियर मैकेनिकल इंजीनियर सी ए, एम बी ए आदि कोर्स पढ़ाते हैं।" यह सोच उचित नहीं है। "क्योंकि जिन क्षेत्रों में स्त्रियां ऐसे कार्य कर रही हैं, वहां पुरुष लोग बेरोजगार हो गए। वे खाली सड़कों पर भटक रहे हैं, उन्हें काम नहीं मिल रहा। क्या यह देश की हानि नहीं हुई?"
        कुछ बेटियों से मैंने पूछा, कि "आप नौकरी व्यापार क्यों करती हैं?" उन्होंने कहा, कि "हमें अपने खर्चों के लिए पुरुषों के आगे हाथ फैलाना पड़ता है। आर्थिक पराधीनता है, इसलिए हम अपने पैसे खुद कमाना चाहती हैं, ताकि आर्थिक स्वतंत्रता बनी रहे।" मैंने उनसे पूछा, "आप पुरुषों के आगे महीने में कितनी बार हाथ फैलाती हैं?" वे बोलीं, "शनिवार रविवार को हमें शॉपिंग करनी होती है, तो महीने में चार बार हमको पुरुषों के आगे हाथ फैलाना पड़ता है।" मैंने कहा, कि "पुरुष तो आपके सामने एक दिन में 10 बार हाथ फैलाते हैं। मुझे नाश्ता दो, मुझे खाना दो, मेरे कपड़े दो, मेरे जूते चप्पल दो, मेरे मोजे नहीं मिल रहे, इत्यादि।" इस प्रकार से पुरुष आपके सामने दिन में 10 बार हाथ फैलाते हैं। उन्होंने तो कभी नहीं कहा, कि "हम खाना खाने के लिए स्त्रियों के आधीन हैं, इसलिए हम अपना खाना खुद बनाएंगे।" "वे महीने में 300 बार स्त्रियों के आगे हाथ फैलाते हैं, उनको कोई शर्म नहीं आती। और आपको महीने में 4 बार हाथ फैलाने में भी शर्म आती है।" "जो पति आपका सब प्रकार से रक्षक पालक पोषक हितकारक और जीवन के सब सुख देने वाला है, उससे धन मांगना आपका अधिकार है। "अपना अधिकार मांगने में शर्म कैसी?" क्योंकि आप भी तो उसके घर की सुरक्षा व्यवस्था आदि के लिए सारा दिन घर में काम करती हैं। वह आपका शत्रु नहीं है, जो कि आपको उससे धन मांगने में शर्म आवे। " ऐसा सोचना चाहिए। "आर्थिक स्वतंत्रता का एक लाभ देखकर 10 प्रकार की हानियां भी तो आपने उठाई!" इसलिए यह कोई बुद्धिमत्ता की बात नहीं है।"
         ज़रा सोचिए, "घर में बड़ों की सेवा करना, बच्चों को जन्म देना, बच्चों का प्रेमपूर्वक पालन पोषण करना, उन्हें सभ्यता सिखाना, उन्हें अच्छे संस्कार देना, घर में सबको बढ़िया भोजन खिलाकर सबके स्वास्थ्य का ध्यान रखना, घर में आए अतिथि की सेवा करना, नौकर चाकर से काम कराना, इत्यादि, ये सब काम वेदों में ईश्वर ने स्त्रियों के लिए ही तो बताए हैं।" 
          और "धन कमाना, दूर-दूर जाना, यात्राएं करना, धक्के खाना, नौकरी व्यापार करना, युद्ध करना, आदि, ये सब भारी भारी काम ईश्वर ने वेदों में पुरुषों के लिए बताए हैं।" "अब स्त्रियों ने पुरुषों वाले काम नौकरी व्यापार आदि आरंभ कर दिए, इससे समाज में अनेक प्रकार का असंतुलन उत्पन्न हो गया, और अनेक समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं।"
          "जो व्यापार नौकरी पुरुष करते थे, अब वे स्त्रियां करने लगी। इससे जितनी स्त्रियां ये पुरुषों वाले काम कर रही हैं, उतने पुरुष बेरोजगार हो गए।" "दूसरी ओर स्त्रियों ने घर से बाहर काम करना शुरु किया, तो उनके घर के काम छूट गए। परिवार बिखर गया। घर का आपसी प्रेम और संगठन टूटने लगा। तलाक की घटनाएं बढ़ने लगी। चरित्रहीनता, और स्त्रियों का अनेक प्रकार से शोषण भी बहुत बढ़ गया। बाहर का और घर का काम अधिक हो जाने से नौकरीपेशा स्त्रियों का स्वास्थ्य भी बिगड़ गया। घर के लोगों को और बच्चों को ठीक समय पर अच्छा पौष्टिक स्वादिष्ट स्वास्थ्यवर्धक भोजन नहीं मिलता। बच्चों को माता का प्रेम नहीं मिलता। उनका स्वास्थ्य भी खराब हो जाता है। नौकर बच्चों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं। बच्चों को तंग करते हैं। उन्हें उत्तम संस्कार नौकर नहीं दे सकते। माताओं ने संस्कार देना बंद कर दिया। नौकरी व्यापार के कारण उनके पास बच्चों की देखभाल करने और उनको एक अच्छा सभ्य नागरिक बनाने का समय ही नहीं है। वे तो नौकरी पर चली गई। परिणाम यह हुआ, कि जब बच्चे बड़े हो गए, तब उन्होंने माता पिता की सेवा नहीं की। क्योंकि बच्चों को ऐसे संस्कार ही नहीं दिए गए। इस में अधिक दोष माता पिता का है। बच्चे भी जवान हो कर स्वार्थी बनकर विदेशों में जाकर अपने पैसे कमाकर खा पी कर अपनी मौज करते हैं। और अपने बूढ़े माता पिता को वृद्धाश्रमों में छोड़ आते हैं। इस प्रकार से चारों ओर दुष्परिणाम है।"
        "यदि आप इन समस्याओं से छूटना चाहते हों, तो वेदों के अनुसार स्त्री और पुरुष अपना अपना कार्य करें। विदेशी लोगों की अंधाधुंध नकल न करें।" वेदों के अनुसार ऋषियों ने बताया है, कि "स्त्रियां घर का काम करें, और पुरुष बाहर का। इसमें ही सबकी सुरक्षा उन्नति और सुख है।"
         "यदि घर में धन कमाने वाला पुरुष न रहे, उसकी मृत्यु हो जाए, या अत्यंत रोगी हो जाए, आदि आदि ऐसी आपात्कालीन परिस्थितियों में भी परिवार के अन्य पुरुष लोग, घर की स्त्रियों का भरण पोषण करें, ऐसा वेदो में विधान है।" "और बिल्कुल अंतिम अवस्था में जब कोई भी धन कमाने वाला पुरुष घर में न हो, केवल तब ही स्त्रियां धन कमा सकती हैं, सामान्य रूप से नहीं।" "तब भी स्त्रियां पहले अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखें, उसके बाद ही धन कमाएं। आजकल कंप्यूटर से घर बैठे भी बहुत सा धन कमाया जा सकता है। उसमें सुरक्षा भी रहती है, और आय भी हो जाती है।"
         एक और स्पष्टीकरण -- "मैं स्त्रियों के पढ़ने-लिखने का विरोधी नहीं हूं। स्त्रियों को खूब पढ़ना चाहिए। क्योंकि इससे बुद्धि का विकास होता है। और घर का प्रबंध व्यवस्था ठीक रखने के लिए बहुत बुद्धि चाहिए। इसलिए स्त्रियों की पढ़ाई लिखाई का उद्देश्य घर की व्यवस्था ठीक चलाना, बुद्धिमत्ता से सब कार्य करना, स्वयं सुखी होना, अपनी सुरक्षा रखना, परिवार को सुख देना इत्यादि होना चाहिए। स्त्रियों की पढ़ाई लिखाई का उद्देश्य धन कमाना मुख्य रूप से नहीं होना चाहिए। तभी समाज का संतुलन ठीक बनेगा।"
            जो महिलाएं आज नौकरी व्यापार आदि करती हैं, वे विचार करें, "क्या उनकी दादी नानी नौकरी करती थी? नहीं। क्या उन्होंने अच्छी प्रकार से घर नहीं चलाया? बहुत अच्छा चलाया। वे आप से कम पढ़ी लिखी थी, फिर भी आप से अधिक अच्छा घर चलाया। इसलिए अपनी पुरानी परंपरा को ही सुरक्षित रखें। वही वेदानुकूल और सुखदायक है। विदेशियों की नकल न करें, और व्यर्थ के कुतर्क लगाकर अपना और समाज का जीवन नष्ट न करें।"
         "समाज में कुछ क्षेत्रों में स्त्रियों को कार्य भी करना चाहिए। वह भी धन कमाने के उद्देश्य से नहीं। बल्कि सब स्त्रियों की सुरक्षा के लिए, अपनी सुरक्षा के लिए, देश के चरित्र की रक्षा के लिए, दुर्घटनाओं को रोकने के लिए, इन उद्देश्यों से स्त्रियों को कुछ क्षेत्रों में काम करना चाहिए। जैसे कि अध्यापन में, चिकित्सा क्षेत्र में, पुलिस में, वकालत में, बैंकों आदि में। राजनीति में भी कुछ स्त्रियों को जाना चाहिए, ताकि वे स्त्रियों की समस्याओं को समझें और इस प्रकार के कानून बना सकें, जो देश की स्त्रियों की सुरक्षा के लिए हों।" "परन्तु सब क्षेत्रों में स्त्रियों को नहीं जाना चाहिए। जैसे रात को होटल में शराब पिलाना, इंजीनियर बनना, आर्किटेक्ट बनना, सेना में युद्ध करने के लिए जाना इत्यादि। वहां उनकी अपनी सुरक्षा को खतरा है।" "जिन कार्यों को पुरुष कर सकते हैं, वह उनका व्यवसाय है, ऐसे कार्यों को स्त्रियां क्यों करें?"
           व्यापारिक कंपनियों में सेक्रेटरी आदि बनकर, जो  स्त्रियां काम करती हैं, वहां उन स्त्रियों का अनेक प्रकार से शोषण ही अधिक होता है। और जो स्त्रियां गुलछर्रे उड़ाने के लिए नौकरी व्यापार करती हैं, उन्हें भी अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखकर संयम रखना चाहिए। इस हेतु से भी नौकरी व्यापार आदि करना अच्छा नहीं है। क्योंकि वहां भी उनकी सुरक्षा को सदा खतरा बना रहता है।" "यदि उन्हें कुछ धन कमाने की इच्छा या शौक हो भी, तो अपने पति के व्यवसाय में एक दो घण्टे सहयोग देकर वे धन कमा सकती हैं। इससे उन का शौक भी पूरा हो जाएगा और उनकी सुरक्षा भी बनी रहेगी।"
           जब स्त्रियां नौकरी व्यापार आदि करने के लिए घर से बाहर निकलती हैं, तब समाज के दुष्ट लोग उन पर अनेक प्रकार के अन्याय अत्याचार शोषण आदि अपराध भी करते हैं। "स्त्रियों के प्रति अत्याचार अन्याय शोषण आदि करने वाले अपराधियों के लिए शासन की ओर से दंड व्यवस्था भी अत्यन्त कठोर होनी चाहिए, तभी अपराधों को रोका जा सकेगा, अन्यथा नहीं।"
         नौकरी व्यापार करने वाली महिलाएं यह समझती हैं, कि "हम अब स्वात्म निर्भर हो गई। जबकि वे अनपढ़ नौकर चाकरों पर निर्भर करती हैं। क्योंकि उनके बिना उनके घर का काम नहीं चल सकता। जो स्त्रियां घर से बाहर नौकरी नहीं करती, घर का काम संभालती हैं, उनको धन आदि के लिए अपने पढ़े-लिखे बुद्धिमान पति पर निर्भर करना पड़ता है। अब आप दोनों की तुलना कर लीजिए, कि कौन सा पक्ष अधिक अच्छा है। "अनपढ़ नौकरों पर निर्भर करना," या "पढ़े-लिखे बुद्धिमान पति पर"!
             इसलिए गंभीरता से चिंतन करें। वैदिक सभ्यता संस्कृति के अनुसार खूब सोच-समझकर निर्णय लेवें। "स्त्रियां सबसे पहले अपनी रक्षा करें, फिर परिवार समाज राष्ट्र की सुरक्षा के लिए भी प्रयास करें। ऐसा करने से सब को सुख मिलेगा, सब की उन्नति होगी, और चरित्र से संबंधित अनेक दुर्घटनाएं भी रुकेंगी।"

Friday, 11 April 2025

सत्संग - डॉ० उषा पाण्डेय 'शुभांगी'


सत्संग - डॉ० उषा पाण्डेय 'शुभांगी'

https://sarasach.com/?p=457


सत्संग करें हम, शांति मिलेगी।
विचार हमारे शुद्ध होंगे, नई उर्जा मिलेगी।
संतो का संग होगा, सकारात्मकता बढ़ेगी।
आत्मा की शुद्धि होगी, 
सोच बदलेगी।
व्यक्तित्व का विकास होगा,
अज्ञानता का नाश होगा।
मन पवित्र होगा, ईश से जुड़ाव होगा।
जिंदगी को देखने का नजरिया बदलता है।
सत्संग करने से, अहंकार लालच सब मिटता है।   
तन में स्फूर्ति आती, निर्णय हम सही लेते।
परनिंदा नहीं करते, जीवन का आनंद लेते।
मन भक्तिमय होता, नहीं होता उदास।
मधुर वचन हम बोलते, होता हमारा सम्पूर्ण विकास।
अच्छी बातें हम सीखते, औरों को सिखलाते।
अपना दुख भूल हम, औरों की खुशियों में खुशियाँ मनाते।
नवचेतना का संचार होता, नीरसता रहती दूर।
मोह-माया से दूर रहते, खुशियाँ मिलती भरपूर।
तन मन शुद्ध होता, तनाव से मिलता राहत।
आत्मबल हमें मिलता, नहीं करते हम किसी को आहत।
मन में श्रद्धा बढ़े, ईश्वर की कृपा मिले। 
वातावरण शुद्ध 
 हो, तन मन रहे खिले खिले।
भावनात्मक पक्ष होता मजबूत,
जीवन में रहता उमंग।
सीख जाते हम, सही जीवन जीने का ढंग।
सत्संग से मन पावन होता, 
सत्संग का कोई जवाब नहीं।
दुख से हम घबराते नहीं, बुरे भाव मन में आते नहीं।
जीवन में आगे बढ़ना हो तो, सत्संग करें जरूर। 
आध्यात्मिक पक्ष मजबूत होगा, नहीं रहेंगे हम मजबूर।

डॉ० उषा पाण्डेय 'शुभांगी'
स्वरचित

सत्संग के जीवन में प्रभाव - डॉ बी आर नलवाया

 सत्संग के जीवन में प्रभाव - डॉ बी आर नलवाया

https://sarasach.com/?p=455

मनुष्य अनुकरण प्रिय प्राणी है ।मनुष्य के अनुकरण करने की सहज आदत है। मनुष्य के बारे में मनोवैज्ञानिकों का कथन है, कि एक व्यक्ति के निर्माण में 60 प्रतिशत से भी ज्यादा वातावरण का प्रभाव होता है, और 40 प्रतिशत अनुवांशिकता का प्रभाव रहता है। अतः मनुष्य को अच्छे सत्संग में रहना चाहिए । सत्संग का आशय मात्र किसी पुस्तक के पठन-पाठन से या किसी प्रवचन के श्रवण से नहीं है । सत्संग का अर्थ है सत् का संग करना ,अर्थात हमें मनुष्य मात्र को अच्छे लोगों की संगत में रहना चाहिए । हमें अहंकार, क्रोध और हिंसा जैसी बुराइयां जल्दी से जल्दी छोड़ देनी चाहिए । तभी हम अच्छे लोगों की संगत व अच्छे विचारों के सत्संग से हम अपने जीवन में सत्यता ,सात्विकता और पवित्रता की प्रेरणा मिलेगी और  जिससे हमारा जीवन -पथ प्रदर्शक होता रहेगा। यही सत्संग का प्रभाव होता है । इसलिए कहा जाता है, अच्छे सत्संग से अच्छी संगति बनेगी, स्नेह मिलेगा और मैत्री सदा अच्छे लोगों के साथ रहने से संभव हो सकेगी। केवल 1 घंटे के सत्संग से सारी बातें आपके हृदय को स्पर्श करें या चोट पहुंचाने, यह आप पर निर्भर करता है कि सत्संग किस तरह का आपने स्वीकार किया । परमात्मा महावीर का सत्संग  करके चंद्र -कौशिक भद्र कौशिक बन गया था । सत्संग पाकर लुटेरा वाल्मीकि संत या वाल्मीकि बन गया था।
      संत तुलसी दास जी ने तो क्षण भर की सत्संगति  को भी कालजयी बताया है। क्षण भर के सत्संग की महिमा बताते हुए संत तुलसी दास जी ने एक पद लिखा था –
एक घड़ी आधी घड़ी ,आधी में पुनि आध। 
 तुलसी संगत साधु की, हरे कोटि अपराध ।। 

डॉ बी आर नलवाया मंदसौर

सत्संग - डॉ. रुपाली दिलीप चौधरी


सत्संग - डॉ. रुपाली दिलीप चौधरी
https://sarasach.com/?p=453

भारतीय आध्यात्मिक चिंतन में "सत्संग" एक ऐसा तत्व है जिसे आत्मोद्धार का सार कहा गया है। 'सत्' का अर्थ है सत्य, सद्गुण, सदाचार और ईश्वर; जबकि 'संग' का अर्थ है संगति या संपर्क। इस प्रकार सत्संग का आशय है - सत्य और सदाचार की संगति ।"सत्संगति किम् न करोति पुंसाम्?" – हितोपदेश ,सज्जनों की संगति मनुष्यों के लिए क्या नहीं कर सकती? मनुष्य का जीवन जिन विचारों से प्रभावित होता है, वही उसकी दिशा तय करते हैं। सत्संग जीवन को सकारात्मकता, विवेक और आत्मज्ञान की ओर ले जाता है।"सत्यमेव जयते नानृतं" - मुण्डकोपनिषद् सत्य की विजय की घोषणा करने वाला यह वाक्य सत्संग की आत्मा है। वेदों में ऋषियों की संगति को ही सत्संग कहा गया है, जहाँ सत्य का अन्वेषण होता है। 'सत्संगत्वे निस्संगत्वं, निस्संगत्वे निर्मोहत्वम् ।निर्मोहत्वे निश्चलतत्त्वं, निश्चलतत्त्वे जीवन्मुक्तिः।"– शंकराचार्य, विवेकचूडामणि • इस श्लोक के अनुसार सत्संग से वैराग्य उत्पन्न होता है, वैराग्य से मोह का नाश होता है, और अंततः आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।"सज्जन संगति रेंगन ते विषधर भी अमृत होई।"अर्थात् जैसे साँप भी चंदन वृक्ष के स्पर्श से सुगंधित हो जाता है, वैसे ही दुष्ट भी सत्संग से सुधर सकता है।"सत्संगति से मन सुधरे, विवेक बढ़े दिन रात।कबिरा तेरे संग से, मिटे भवसागर त्रास ॥" कबीरदास जी ने सत्संग को मोक्ष का द्वार बताया है। वे कहते हैं कि सत्संग से ही आत्मा परमात्मा से जुड़ती है। 'सत्संगात लभते बुद्धि, बुद्धिरज्ञाननाशिनी । 'ज्ञानं लभ्यते ततो, मोक्षः सुलभं भवेत्॥"सत्संग से बुद्धि शुद्ध होती है, और फिर ज्ञान प्राप्त होकर मोक्ष की ओर गमन होता है।सत्संग मानसिक संतुलन को सुदृढ़ करता है।चिंतन की दिशा को सकारात्मक बनाता है।ध्यान और आत्मनिरीक्षण की प्रेरणा देता है।व्यक्तियों में नैतिक मूल्यों का विकास होता है।समुदाय में समरसता और भाईचारा बढ़ता है। युवा पीढ़ी को सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक दिशा मिलती है। संगात संजायते कामः संगात् संजायते ज्ञानम्। संगात् सर्वं प्रवर्त्तते, सत्संगो हि परं बलम् ॥" आज की व्यस्त और तनावपूर्ण जीवनशैली में सत्संग एक मानसिक औषधि के रूप में कार्य करता है। आभासी दुनिया से जुड़े समाज को वास्तविक, मानवीय और आत्मिक संवाद की आवश्यकता है, जो केवल सत्संग में संभव है। सत्संग मंचों के माध्यम से युवा आत्मनिष्ठ बनते हैं।नशा, अपराध, मानसिक विक्षोभ आदि से मुक्ति के लिए यह साधन कारगर है।आत्मज्ञान, सेवा भावना और राष्ट्रभक्ति को जाग्रत करता है।"बिन हरिभजन न भव तरै, सत्संग बिनु होय।सत्संग सुगम करि हरि कृपा, साधन धाम सो होय - रामचरितमानस सत्संग वह भूमि है जहाँ आत्मा पुष्प की भांति खिलती है और ईश्वर की ओर अग्रसर होती है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, अपितु एक आध्यात्मिक यात्रा है, जो जीवन को नवचेतना से भर देती है।एक ऐसी आध्यात्मिक यात्रा जिसमें ना किसी के  प्रति क्रोध, द्वेष है अपितु शांति, संतोष का मूल स्त्रोत होता हैं।

हिंदू विवाह संस्कार - प्रदीप कुमार नायक

हिंदू विवाह संस्कार - प्रदीप कुमार नायक

https://sarasach.com/?p=451

             प्रदीप कुमार नायक 

          स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकार 
                         वैदिक संस्कृति के अनुसार सोलह संस्कारों को जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण संस्कार माने जाते हैं। विवाह संस्कार उन्हीं में से एक है जिसके बिना मानव जीवन पूर्ण नहीं हो सकता। हिंदू धर्म में विवाह संस्कार को सोलह संस्कारों में से एक संस्कार माना गया है।
               शाब्दिक अर्थ
                          विवाह = वि + वाह, अत: इसका शाब्दिक अर्थ है - विशेष रूप से (उत्तरदायित्व का) वहन करना। पाणिग्रहण संस्कार को सामान्य रूप से हिंदू विवाह के नाम से जाना जाता है। अन्य धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार होता है जिसे कि विशेष परिस्थितियों में तोड़ा भी जा सकता है, परंतु हिंदू विवाह पति और पत्नी के बीच जन्म-जन्मांतरों का सम्बंध होता है जिसे किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता। अग्नि के सात फेरे लेकर और ध्रुव तारा को साक्षी मान कर दो तन, मन तथा आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हिंदू विवाह में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संम्बंध से अधिक आत्मिक संम्बंध होता है और इस संम्बंध को अत्यंत पवित्र माना गया है।
       सात फेरे और सात वचन
                      विवाह एक ऐसा मौक़ा होता है जब दो इंसानो के साथ-साथ दो परिवारों का जीवन भी पूरी तरह बदल जाता है। भारतीय विवाह में विवाह की परंपराओं में सात फेरों का भी एक चलन है। जो सबसे मुख्य रस्म होती है। हिन्दू धर्म के अनुसार सात फेरों के बाद ही शादी की रस्म पूर्ण होती है। सात फेरों में दूल्हा व दुल्हन दोनों से सात वचन लिए जाते हैं। यह सात फेरे ही पति-पत्नी के रिश्ते को सात जन्मों तक बांधते हैं। हिंदू विवाह संस्कार के अंतर्गत वर-वधू अग्नि को साक्षी मानकर इसके चारों ओर घूमकर पति-पत्नी के रूप में एक साथ सुख से जीवन बिताने के लिए प्रण करते हैं और इसी प्रक्रिया में दोनों सात फेरे लेते हैं, जिसे सप्तपदी भी कहा जाता है। और यह सातों फेरे या पद सात वचन के साथ लिए जाते हैं। हर फेरे का एक वचन होता है, जिसे पति-पत्नी जीवनभर साथ निभाने का वादा करते हैं। यह सात फेरे ही हिन्दू विवाह की स्थिरता का मुख्य स्तंभ होते हैं।
    सात फेरों के सात वचन 
                 विवाह के बाद कन्या वर के वाम अंग में बैठने से पूर्व उससे सात वचन लेती है। कन्या द्वारा वर से लिए जाने वाले सात वचन इस प्रकार है।
            प्रथम वचन
                     तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी !!
                    (यहाँ कन्या वर से कहती है कि यदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने संग लेकर जाना। कोई व्रत-उपवास अथवा अन्य धर्म कार्य आप करें तो आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दें। यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)
                             किसी भी प्रकार के धार्मिक कृ्त्यों की पूर्णता हेतु पति के साथ पत्नि का होना अनिवार्य माना गया है। जिस धर्मानुष्ठान को पति-पत्नि मिल कर करते हैं, वही सुखद फलदायक होता है। पत्नि द्वारा इस वचन के माध्यम से धार्मिक कार्यों में पत्नि की सहभागिता, उसके महत्व को स्पष्ट किया गया है।
         द्वितीय वचन
                            पुज्यौ यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या:,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम !!
                  (कन्या वर से दूसरा वचन मांगती है कि जिस प्रकार आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार मेरे माता-पिता का भी सम्मान करें तथा कुटुम्ब की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान करते हुए ईश्वर भक्त बने रहें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)
                         यहाँ इस वचन के द्वारा कन्या की दूरदृष्टि का आभास होता है। आज समय और लोगों की सोच कुछ इस प्रकार की हो चुकी है कि अमूमन देखने को मिलता है--गृहस्थ में किसी भी प्रकार के आपसी वाद-विवाद की स्थिति उत्पन होने पर पति अपनी पत्नि के परिवार से या तो सम्बंध कम कर देता है अथवा समाप्त कर देता है। उपरोक्त वचन को ध्यान में रखते हुए वर को अपने ससुराल पक्ष के साथ सदव्यवहार के लिए अवश्य विचार करना चाहिए।
           तृतीय वचन
                            जीवनम अवस्थात्रये मम पालनां कुर्यात,
वामांगंयामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृ्तीयं !!
                      (तीसरे वचन में कन्या कहती है कि आप मुझे ये वचन दें कि आप जीवन की तीनों अवस्थाओं (युवावस्था, प्रौढावस्था, वृद्धावस्था) में मेरा पालन करते रहेंगे, तो ही मैं आपके वामांग में आने को तैयार हूँ।)
        चतुर्थ वचन
कुटुम्बसंपालनसर्वकार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या:,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुर्थं !!
                    (कन्या चौथा वचन ये माँगती है कि अब तक आप घर-परिवार की चिन्ता से पूर्णत: मुक्त थे। अब जबकि आप विवाह बंधन में बँधने जा रहे हैं तो भविष्य में परिवार की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति का दायित्व आपके कंधों पर है। यदि आप इस भार को वहन करने की प्रतीज्ञा करें तो ही मैं आपके वामांग में आ सकती हूँ।)
                         इस वचन में कन्या वर को भविष्य में उसके उतरदायित्वों के प्रति ध्यान आकृ्ष्ट करती है। विवाह पश्चात कुटुम्ब पौषण हेतु पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है। अब यदि पति पूरी तरह से धन के विषय में पिता पर ही आश्रित रहे तो ऐसी स्थिति में गृहस्थी भला कैसे चल पाएगी। इसलिए कन्या चाहती है कि पति पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर होकर आर्थिक रूप से परिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ति में सक्षम हो सके। इस वचन द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया है कि पुत्र का विवाह तभी करना चाहिए जब वो अपने पैरों पर खडा हो, पर्याप्त मात्रा में धनार्जन करने लगे।
          पंचम वचन :
                        स्वसद्यकार्ये व्यवहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्त्रयेथा,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या !!
                  (इस वचन में कन्या जो कहती है वो आज के परिपेक्ष में अत्यंत महत्व रखता है। वो कहती है कि अपने घर के कार्यों में, विवाहादि, लेन-देन अथवा अन्य किसी हेतु खर्च करते समय यदि आप मेरी भी मन्त्रणा लिया करें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)
                        यह वचन पूरी तरह से पत्नि के अधिकारों को रेखांकित करता है। बहुत से व्यक्ति किसी भी प्रकार के कार्य में पत्नी से सलाह करना आवश्यक नहीं समझते। अब यदि किसी भी कार्य को करने से पूर्व पत्नी से मंत्रणा कर ली जाए तो इससे पत्नी का सम्मान तो बढता ही है, साथ साथ अपने अधिकारों के प्रति संतुष्टि का भी आभास होता है।
           षष्ठम वचनः
                             न मेपमानमं सविधे सखीनां द्यूतं न वा दुर्व्यसनं भंजश्चेत,
वामाम्गमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम !!
                       (कन्या कहती है कि यदि मैं अपनी सखियों अथवा अन्य स्त्रियों के बीच बैठी हूँ तब आप वहाँ सबके सम्मुख किसी भी कारण से मेरा अपमान नहीं करेंगे। यदि आप जुआ अथवा अन्य किसी भी प्रकार के दुर्व्यसन से अपने आप को दूर रखें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)
                   वर्तमान परिपेक्ष्य में इस वचन में गम्भीर अर्थ समाहित हैं। विवाह पश्चात कुछ पुरुषों का व्यवहार बदलने लगता है। वे जरा जरा सी बात पर सबके सामने पत्नी को डाँट-डपट देते हैं। ऐसे व्यवहार से पत्नी का मन कितना आहत होता होगा। यहाँ पत्नी चाहती है कि बेशक एकांत में पति उसे जैसा चाहे डांटे किन्तु सबके सामने उसके सम्मान की रक्षा की जाए, साथ ही वो किन्हीं दुर्व्यसनों में फँसकर अपने गृ्हस्थ जीवन को नष्ट न कर ले।
            सप्तम वचनः
परस्त्रियं मातृसमां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कुर्या,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तममत्र कन्या !!
                     (अन्तिम वचन के रूप में कन्या ये वर मांगती है कि आप पराई स्त्रियों को माता के समान समझेंगें और पति-पत्नि के आपसी प्रेम के मध्य अन्य किसी को भागीदार न बनाएंगें। यदि आप यह वचन मुझे दें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)
                         विवाह पश्चात यदि व्यक्ति किसी बाह्य स्त्री के आकर्षण में बँध पगभ्रष्ट हो जाए तो उसकी परिणिति क्या होती है। इसलिए इस वचन के माध्यम से कन्या अपने भविष्य को सुरक्षित रखने का प्रयास करती है।