Friday, 11 April 2025

सत्संग के जीवन में प्रभाव - डॉ बी आर नलवाया

 सत्संग के जीवन में प्रभाव - डॉ बी आर नलवाया

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मनुष्य अनुकरण प्रिय प्राणी है ।मनुष्य के अनुकरण करने की सहज आदत है। मनुष्य के बारे में मनोवैज्ञानिकों का कथन है, कि एक व्यक्ति के निर्माण में 60 प्रतिशत से भी ज्यादा वातावरण का प्रभाव होता है, और 40 प्रतिशत अनुवांशिकता का प्रभाव रहता है। अतः मनुष्य को अच्छे सत्संग में रहना चाहिए । सत्संग का आशय मात्र किसी पुस्तक के पठन-पाठन से या किसी प्रवचन के श्रवण से नहीं है । सत्संग का अर्थ है सत् का संग करना ,अर्थात हमें मनुष्य मात्र को अच्छे लोगों की संगत में रहना चाहिए । हमें अहंकार, क्रोध और हिंसा जैसी बुराइयां जल्दी से जल्दी छोड़ देनी चाहिए । तभी हम अच्छे लोगों की संगत व अच्छे विचारों के सत्संग से हम अपने जीवन में सत्यता ,सात्विकता और पवित्रता की प्रेरणा मिलेगी और  जिससे हमारा जीवन -पथ प्रदर्शक होता रहेगा। यही सत्संग का प्रभाव होता है । इसलिए कहा जाता है, अच्छे सत्संग से अच्छी संगति बनेगी, स्नेह मिलेगा और मैत्री सदा अच्छे लोगों के साथ रहने से संभव हो सकेगी। केवल 1 घंटे के सत्संग से सारी बातें आपके हृदय को स्पर्श करें या चोट पहुंचाने, यह आप पर निर्भर करता है कि सत्संग किस तरह का आपने स्वीकार किया । परमात्मा महावीर का सत्संग  करके चंद्र -कौशिक भद्र कौशिक बन गया था । सत्संग पाकर लुटेरा वाल्मीकि संत या वाल्मीकि बन गया था।
      संत तुलसी दास जी ने तो क्षण भर की सत्संगति  को भी कालजयी बताया है। क्षण भर के सत्संग की महिमा बताते हुए संत तुलसी दास जी ने एक पद लिखा था –
एक घड़ी आधी घड़ी ,आधी में पुनि आध। 
 तुलसी संगत साधु की, हरे कोटि अपराध ।। 

डॉ बी आर नलवाया मंदसौर

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