Friday 10 February 2023

आज़ाद हिंदुस्तान में - गणपत लाल उदय

 















 - आज़ाद
शीर्षक - आज़ाद हिंदुस्तान में
विधा - कविता

यह कैसी आज़ादी है आज आज़ाद हिंदुस्तान में,
मानवता दम तोड़ रहीं है यें अपनें देश महान में।
गूॅंगे बहरे लोग हो रखें और कहतें है होशियार में,
ऑंखो पर पर्दा पड़ा है आज इस सारे जहान में।।

उठ रहा मैरे दर्द सीने में इसलिए मौन आज हूॅं में,
शब्दों के जरिये सभी तक बात पहुॅंचा रहा हूॅं में।
इनको जोड़ जोड़कर एक कविता बना रहा हूॅं में,
क्या हम है स्वतन्त्र आज सोचकर परेशान हूॅं में।।

आग लगी है हर तरफ़ हमारे सपनों के संसार में,
कौरव-पाण्डव है आज भी भारत देश महान में।
मर्यादा की तमाम लकीरें लांघ रहें जो तकरार में,
झूठ फरेब से चला रहें है वों कारोबार ज़हान में।।

हारने न देना प्रभु हमको ऐसे कठिन इम्तेहान में,
एकलव्य ना बनने देना जो अंगूठा दिया दान में।
माना वक्त लगता है सभी को जानने-समझने में,
शिक्षक शिक्षार्थियों में भेद न करें यें परिहास में।।

सुगंध एवं सद्गुण हम फैलाते रहें इस ज़हान में,
मन में मेल न रखें कोई जातिवाद का इंसान में।
जीओ एवं जीने दो सबको आज़ाद हिंदुस्तान में,
छुआ-छूत को गोली मारों ख़ून एक है इंसान में।।

सारा सच लिखा है मैंने देख आज के हालात में,
अच्छे बनों साथियों और भलाई करों संसार में।
पैरों से रोंदी यह धूल कही गिर न जाए ऑंख में, 
बेदर्दी से मत खरोंचों कोई किसे भी तकरार में।।

रचनाकार ✍️
गणपत लाल उदय, अजमेर राजस्थान

No comments:

Post a Comment