Sunday 12 February 2023

जाति - प्रा.गायकवाड विलास












*सारा सच प्रतियोगिता के लिए रचना*

**विषय:जाति*

**तब कौन पुछता है*
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 (छंदमुक्त काव्य रचना)

मुसीबत में जब आएं जिंदगी हमारी यहां,
उसी वक्त हम सभी यहां पर इन्सान बन जाते है।
तब कौन पुछता है किसी को यहां जाति-धर्म,
सिर्फ मुसीबत देखकर ही हम यहां बदल जाते है।

जब पड़ती है ज़रुरत हमें और किसी के खून की,
तब उसी लहू की जाति हम यहां कब कहां पुछते है?
इन्सान होकर भी हम आज तक समझें नहीं इसी बात को,
गिरगिट से ज्यादा तो यहां पर इन्सान ही अपना रंग बदलते है।

इसी जाति-धर्मो के खेलने हर वक्त यहां पर,
सभी के जीवन में ऊंच-नीच का फासला बनाएं रखा है।
सिर्फ ज्ञान के दीप जलने से बदलती नहीं नीतियां,
उसी के लिए मन का अंधेरा जलना भी यहां जरुरी है।

ज्ञान का अमृत पी जाने से यहां हर कोई ज्ञानी नही बनता,
गर यही बात हो जाती सच तो आज यहां अंधेरा नहीं छा जाता।
जो समझ पाएं है ज्ञान का सही मतलब इस संसार में,
सिर्फ उसी इन्सानों को यहां, इन्सानों इन्सानों में कोई ऊंच-नीच नहीं दिखता।

आज बदल गए है हम,बदली है जिंदगियां हमारी,
मगर मन की नीतियां आज भी हमारी उसी भेदभाव से भरी हुई है।
जब तक उसी भेदभाव और अहंकार का दहन नहीं होता इस संसार में,
तब तक इस संसार में विषमताओं का ज़लज़ला उठनेवाला ही है।

एक ही आसमां के नीचे खिला है ये सारा संसार,
एक ही धरती मां की छाया सभी के लिए बनी है आधार।
फिर भी हम समझ नहीं पाएं उसी सृष्टि के अनमोल तत्त्वों को यहां,
इसीलिए इस संसार में चारों दिशाओं में फैला अंधकार है।

मुसीबत में जब आएं जिंदगी हमारी यहां,
उसी वक्त हम सभी यहां पर सबकुछ भूल जाते है।
ये कैसा ज्ञान का पाठ पढ़कर जी रहे है हम सभी यहां,
सिर्फ मुसीबत को देखकर ही हम सभी यहां पर इन्सान बन जाते है।

प्रा.गायकवाड विलास.
मिलिंद महाविद्यालय लातूर.

      महाराष्ट्र
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