अतिथि।
[ कविता ]
मेहमान व पाहुन एक,
शब्द नहीं संस्कार है।
अतिथि के आगमन पर,
सम्मान करना एक विरासत रहीं हैं,
सदियों से चली आ रही,
बेहतरीन ज्ञान का व्यवहार है।
इन्हें आगंतुक और अभ्यागत,
के नाम से जाना जाता है।
सन्देश स्पष्ट और भावों को व्यक्त,
करना यह बखूबी सीखाता है।
अतिथि सत्कार सबसे बड़ा पुण्य है,
मुश्किल वक्त का साथ खत्म कर,
विपत्तियों को कर देती शून्य है।
यह नैतिक मूल्यों की आधारशिला है,
सनातनी संस्कृति में सशक्त,
मिसाल बनकर सुसंस्कृत संस्कार की,
सीखाता अत्यन्त सुन्दर सन्देश संग,
प्यार और स्नेह की कहलाता लीला है।
अतिथि देवो भव,
एक उन्नत प्रचलित किंवदंतियां है।
सुंदर और आकर्षक संस्कारों से सनी,
अद्भुत अनमोल और अनूठी,
सांसारिक रीतियां है।
अतिथि सत्कार सबसे बड़ा उपहार है,
ज़िन्दगी के सफ़र में आगे बढ़ने का,
एक नवीन अध्याय और सहृदयता से भरपूर,
अनन्य भाव से पूर्ण,
प्राकृतिक और दैवीय उपचार है।
आओ हम-सब मिलकर ,
एक उन्नत योजना बनाएं।
संसार में खूब उत्साह से,
उत्सव मनाने के लिए व,
अतिथि सत्कार पर मजबूती से,
पकड़ बनाने के लिए,
आपसी मतभेद मिटाकर,
दिल से एक हों जाएं।
डॉ० अशोक,पटना,बिहार।
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