*धर्म*
जब जब धर्म की हानि होती, लेते हैं अवतार प्रभु
करें धर्म स्थापना, दुष्टों का विनाश विभु
'धर्मो रक्षति रक्षित:', जो धर्म की रक्षा करे, धर्म उसकी रक्षा करता है
धर्म के पथ चलने वाला, आगे ही बढ़ता रहता है
दीन दुखी सेवा करो, करो सदा सद्कर्म
प्राणी मात्र से प्रेम करो, यही है
मानव धर्म
'जो धारण करने योग्य है', धर्म वही है
कर्म सदा ऐसा करो जो सही है
'धर्म किये धन ना घटे', कह गये दास कबीर
निर्बल का सहयोग करो, हरो पराई पीर
'परहित सरिस धरम नहीं
भाई', तुलसी दास जी के वचन
परोपकार हेतु अर्पण करो, अपना तन, मन, धन
'स्व' को छोड़ो मनुज, 'पर' पर दो ध्यान
त्याग, धैर्य, सहिष्णुता, हो तेरी पहचान
भारत ने मदद किया सबका, धर्म नहीं पूछा कभी
जो भी आते अपने देश, मान पाते हैं सभी
धर्म दिलाता है हमे, एकता का एहसास
अब कुछ बुरा नहीं होगा, रखो ऐसा विश्वास
सभी धर्म नैतिकता को बढ़ावा देते हैं
पुण्य करो, पाप से बचो, यही सीख देते हैं
अपने बुजुर्ग कह गए, 'सर्व धर्म
समभाव'
दान करने वालों को, होता नहीं अभाव
धर्म, कर्म में कौन बड़ा, उठता है यह प्रश्न
धर्मोचित कर्म करो, और मनाओ जश्न
डॉ० उषा पाण्डेय 'शुभांगी'
स्वरचित
वेस्ट बंगाल
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