"युध्द को विकल्प मत मानों" !!
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वसुधा' धन धान्य दाता के रूप में,
मानव के भाग्य विधाता के रूप में,
धरा" धरती" मेदिनी, नाम हें इसके,
सभी निवासी बेटे, समान हें इसके !
वसुधा भगवान नें..
दी है रहने के लिये,
ना कि लड़ने के लिये !
वसुधा "पर खिची सभी सरहदें बेमानी है,
जब दिलो मे जगह ओर आँखो मे पानी है !
मानव ही दानव बन इसे उजाड़ने मे लगा है!
धरा का धैर्य टूटा तो मानव होना ही सजा है!
मत लो परीक्षा....ईश्वर के साथ प्रकृति की !
कर लो सम्मान, धैर्य धारिता,इस पृथ्वी की !
युद्ध विकल्प क्यों हो गया है..समस्या का,
क्या र्निबल को अधिकार नही है,रक्षा का!
जिसकी लाठी उसकी भैस,
वाला मंजर नजर आता है!
जब पुतिन का पागलपन..
यूक्रेन में कहर ढाता है !!
युध्द आज तक कोई जीता है,
मात्र जनता ही हारती रही है !
सब कुछ लुटा करकें यें बेचारी
लाशें भी..समेंट नही पाती है !!
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स्वरचित.......
डाँ० योगेश सिंह धाकरे "चातक"
{ ओज कवि } आलीराजपुर म.प्र
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