पिता
पिता का हाथ सर पर है जिसके, संतान वह भाग्यशाली हैं।
जीवन भर बच्चों की रक्षा करता पिता, ज्यों पुष्पों का करता माली है।
भावनाओं को मन में छिपा, करता संतान से बहुत प्यार।
बच्चे उसके आँख के तारे, बच्चे ही उसके संसार।।
पिता बनने वाला है, यह सुनते ही, मन उसका बल्लियों उछलता।
कब देखूँगा अपने बच्चे को सारा दिन बस यही सोचता।
बच्चे को हाथ में लेते ही, आनंद चरम सीमा पर होता।
वह खुशी अवर्णनीय है, जो उसके अंदर होता।
खुद भले ही दुख सहे, बच्चों पर आँच न आने देता।
बच्चों की जरूरतें पूरी हों, दिन रात वह एक कर देता।
खुद के कपड़े भले फटे हो,बच्चों को नये कपड़े दिलवाता।
बच्चों को खुश देख, स्वयं मन में हर्षाता।
बच्चों को सिखलाता, जीवन है अनमोल खजाना।
हरदम सबके काम आना, कभी किसी का दिल न दुखाना।
जिंदगी की चुनौतियों का डटकर सामना करना।
पिता, बच्चों को सिखाता,हरदम आगे बढ़ना।
अनुशासित पिता खुद रहता ताकि बच्चे अनुशासित बनें।
कोशिश पिता की यही रहती, वह बच्चों की प्रेरणा बने।
इमानदारी का पाठ पढ़ाता,सही राह बच्चों को दिखलाता।
सदा बच्चों की हिम्मत बढ़ाता, आसमान में उड़नासिखलाता।
सदा बच्चों से यही कहता, चाहे जितना ऊपर उठ जाओ, पाँव अपने जमीं पर रखना।
देश अपना सर्वोपरि है,देश का मान सदा ही रखना।
परिस्थितियाँ सदा एक सी नहीं रहती, पर धीरज कभी मत खोना।
सदा सत्य के मार्ग पर चलना, न्याय का साथ सदा देना।
अपने सपने अधूरे रह गये,
चाहता है पिता बच्चों के सपने न रहे अधूरे।
दिन - रात वह मेहनत करता, ताकि बच्चों के सपने होवें पूरे।
घर का मुखिया होता पिता, जिम्मेदारी अपनी बखूबी निभाता।
बच्चों के मुख पर खुशियांँ लाने को, स्वयं न जाने कितने दुख सह जाता ।
बच्चे को कोई समस्या हो, करता सदा हौसला अफजाई।
बच्चों के हर दर्द का पिता बन जाता दवाई।
डॉ० उषा पाण्डेय 'शुभांगी'
वेस्ट बंगाल
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