Wednesday, 8 November 2023

राजा - लाखसिंह डूंगरोत


 

राजा

"राजा" अगर इस शब्द को दुनिया के सबसे वजनदार और ताकतवर शब्द में शुमार किया जाए तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। न केवल इस शब्द को अपितु इसके समानार्थी शब्दों को भी  यथा - सम्राट, नरपति, भूपति, महाराज, जहाँपनाह,सुल्तान, बादशाह, राजाधिराज इत्यादि ।

 राजा राजतंत्रात्मक शासन तंत्र का सर्वोच्च पद है। वह अपने मंत्रियों की सलाह से अपने राज्य का शासन संचालित करता है। वह अपने शासन क्षेत्र  के लोगों के लिए नियम और नीतियाँ बनाता है। उसकी सहायता के लिए दरबार में विभिन्न स्तर के मंत्री या महामंत्री होते हैं। राजा के गुण और कर्तव्यों पर महाभारत सहित अनेक ग्रंथों में प्रकाश डाला गया है।
             
            राजा विहीना न भवन्ति देशा ।
              देशैविहीना न नृपा भवन्ति॥ 
      (महाभारत, शान्तिपर्व )

भारतीय राजनीतिशास्त्रियों की मान्यता है कि ईश्वर ने अत्याचारियों के भय से डरी हुई प्रजा की रक्षा के लिए इन्द्र, वायु, यम, सूर्य, अग्नि, वरूण, चन्द्रमा तथा कुबेर के अंश से राजा का निर्माण किया है। अर्थात्  दिव्य शक्तियों के पुंज का नाम राजा है। अतः इस शक्तिपुंज का कर्तव्य है कि वह अपनी शक्तियों का सदुपयोग करते हुए प्रजा का कल्याण करे, उसकी रक्षा-सुरक्षा करे, उसका लालन-पालन करे। उसके लिए  रोटी, कपड़ा और मकान की व्यवस्था करे। उसकी शिक्षा और सुरक्षा की व्यवस्था करे । 
जिस देश का राजा प्रजा के हित में काम करता है, वह राजा इतिहास में कालजयी होकर अमर हो जाता है। उसकी प्रजा उसे हमेशा अविस्मरणीय रखती है। भगवान देवनारायण भी अपनी प्रजा के लिए दिन-रात लगे रहते थे, उन्होंने तो अपनी प्रजा की खातिर अपने प्राणों तक की आहुति  दे दी थी । आज भगवान देवनारायण एक लोक देवता के रूप में पूजे जाते हैं।

आज की प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था में भ्रष्टाचारी और विभिन्न अपराधो की धाराओं से सने हुए अपराधियों को राजगद्दियो पर आसीन देखते है तो लगता है कि, क्या  राजतंत्र में भी प्रजापालक देवनारायण पैदा होते थे ? अगर राजतंत्र में पैदा होते थे तो प्रजातंत्र में क्यों नहीं? आखिर दोष किसका ? जनता का !!!
इस प्रजातंत्रात्मक शासन व्यवस्था को हमारे हाथों में सौंपने के लिए सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह ,आजाद, लाला लाजपत राय,महात्मा गांधी ने अपने प्राणों की आहुति दी है । तो क्या उनके प्राणों की आहुति के सम्मान के लिए हमारा कर्तव्य नहीं बनता कि हम अपने देश की राजगद्दी को एक ,अपराध विहीन, सुशिक्षित, साफ सुथरी छवि वाला शासक प्रदान करे। 

     *लाखसिंह डूंगरोत* 
   वरिष्ठ अध्यापक (विज्ञान)
(राजस्थान)


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