*सारा सच प्रतियोगिता के लिए रचना*
**नया साल*
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(छंदमुक्त रचना)
हर नया साल यहां बीत जायेगा,
हर दिन नया सूरज निकल आयेगा।
झूमो नाचो गाओ मनाओ खुशियां,
सृष्टि चक्र है ये यहां चलता ही जायेगा।
चढ़ते जाओ तुम उन्नति की सीढ़ियां,
दिलों में जगाओ तुम सच्ची नीतियां।
देखो चारों ओर फैला रहा है अंधेरा,
ठीक नहीं है ये खत्म होता भाईचारा।
तेरी मेरी सभी की है ये धरती और अंबर,
कौन जाने कब तक चलेगा ये सफ़र?
मिटाओ द्वेष तुम अपने उज्ज्वल कल के लिए,
उसी दिन खिल उठेगा ये सारा संसार।
दहक रही है यहां पर सारी दिशाएं,
देखो बदली-बदली सी है ये हवाएं।
मिटाते मिटाते फिर क्या रहेगा यहां पर,
इन्सान ही नहीं रहेंगे तो यहां कौन है सिकंदर?
पशू पक्षी,पेड़ पौधे और ये हरियाली,
देखो कुदरत की लीला,कैसी फैली है खुशहाली।
जियो सभी ऐसे ही संग संग मिलके,
जिंदगी का क्या भरोसा?जैसे नाच रही है कठपुतली।
ऐसे ही आते जाते रहेंगे सालों साल,
देखो कभी इधर-उधर कितना बुरा है हाल।
ऐसे जहां में कौन सी खुशियां मना रहे हो तुम,
जहां जल रहा है वतन और चारों ओर है बवाल।
हर नया साल यहां पर बीत जायेगा,
हर दिन वो नया सूरज निकल आयेगा।
बनी रहे सदा सभी दिलों में मानवता,
सृष्टि चक्र है ये यहां चलता ही जायेगा।
प्रा.गायकवाड विलास.
मिलिंद महाविद्यालय लातूर.
महाराष्ट्र
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