सरकार
क्यों,जनता के गुबार का
लक्ष्य होती है "सरकार"।
किसके दबाव में करते है
उस पर शब्दों की धार,मार।
क्या हमने पल भर को भी माना "सरकार"के देश हित
किए गए फर्ज पर दो शब्दों का नन्हा सा आभार ?
सर्वप्रथम,सोचने का
विषय है कि क्या "सरकार"
कोई एक व्यक्ति मात्र है,अथवा हाड़ मांस से बना
स्वार्थी पुतला,है जिस पर जनता सामाजिक,राजनैतिक
नैतिक,अनैतिक तौर,तरीके से
अपना सारा क्रोध,भड़ास से भरा कलश फोड़ना चाहती है।
उसे अपनी उंगलियों पर नाचने को बाध्य करना चाहती
है।
सच कुछ और ही है। जनता
कई,कई वर्गों में बंटी होती है
जिनके पीछे भ्रष्ट लोगों के ग्रुप
होते हैं जो स्वार्थवश जनसमुदाय का इस्तेमाल कर
अपना उल्लू सीधा करते है,
अफवाहों के जाल बुने जाते
है,गरीब और जरूरत मंद चंद
रुपयो के खातिर अपना ईमान बेचने को राजी हो जाती है। वह योग्य,अयोग्य कार्य कर्ताओं की पहचान नहीं कर पाती,।यहां तक कि
"सरकार" की उपयोगिताओं को भी नजर अंदाज कर दिया जाता है। खुल्लम खुल्ला विद्रोह पनपता है, प्रजातंत्र का मजाक उड़ाया जाता है।और इस तरह जनता बिना सोचे समझे भेड़ चाल में चल पड़ती
है।नेता और दादा टाइप वाशिंदे जनता को सरकार के
विरुद्ध भड़काने के लिए साम,दाम,दंड भेद सबका उपयोग कर अपनी अलग
जाल साजी सरकार बनाने में
जुट जाते है। अनपढ़ और सरल जनता योग्य और अयोग्य "सरकार" को नहीं
परख पाती।
हमे यह सोचना होगा कि
"सरकार" किसी भी पार्टी की
हो,उसमें आसीन कार्य करता
गुणी,त्यागी,देशभक्त और जनता के रक्षक हों।
हमारा फर्ज है,
हमने जिन्हें चुनकर
केंद्र में भेजा है,उनका हम
सम्मान करें,उन पर अटल
विश्वास रखें। "सरकार" में
बैठे शख्स भी इंसान हैं, उनसे
भी गलतियां हो सकती है,उन्हें समय दें,उनके कार्य में
सहयोगी बनें राह का रोड़ा नहीं। हर कार्य के लिए उनपर निर्भर नहीं रहें,अपितु हम
ईमानदारी से अपने अपने फर्ज निभाएं। यक़ीनन "सरकार" और जनता एक
दूसरे के पूरक हैं । एक दूसरे
पर भरोसा ही हमारे भारतवर्ष को एक सशक्त
राष्ट्र बनाएगा।
जय हिंद, जय भारत
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