वृक्ष ही जीवन - श्रीमती मालती गेहलोद
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वृक्ष सदैव संकट में घिरा रहता,
भूकंप, बाढ़, सुनामी में स्थिर रहता।
लाखों तूफान आए ,विचलित नही होता, अपने धैर्य, सहनशीलता का परिचय देता।
वह सदैव अपनी मिट्टी से जुड़ा रहता, चाहें लाख संकट आये, दृढता से खड़ा रहता।
उदारता इतनी छाया, फल-फूल निःस्वार्थ बाँटता, हवा, पानी शुद्व कर ,जीव जंतुओं को आश्रय देता।
हर मौसम में तठस्थ व अडिग रहता , प्रकृति को सदैव सन्तुलित व सुन्दर बनाएं रखता।
सदैव प्रकृति व प्राणियों में सामंजस्य स्थापित करता , वृक्ष सम्पूर्ण प्राणी जगत में सांसो का संचार करता ।
वृक्ष पातक को भले कानून सजा न दे पाता, किंतु वह कुदरती न्याय से कभी नही बच पाता।
आज मानवजाति संकट में घिरा, संकल्पित हो उठा, इस भारत भूमि को, मै कर दूँगा हरा -भरा।








लेखक- श्रीमती मालती गेहलोद
मंदसौर (म.प्र.)
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