भ्रष्टाचार - महाकवि अनन्तराम चौबे अनन्त
सरकारी आफिस जो भी है
ज्यादा भ्रष्टाचार वहीं होते है ।
चपरासी से लेकर अफसर तक
भ्रष्टाचार में सभी शामिल रहते हैं।
कोर्ट कचहरी थानों में सबसे
ज्यादा भ्रष्टाचार यहीं होता है।
आये दिन पेपरों में रिश्वत ल़ेने का
मामला प्रकाशित होता रहता है ।
निचले कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक
भ्रष्टाचार बिना काम नहीं होता है ।
सुप्रीम कोर्ट में एक दो बड़े वकीलों
की मर्जी से रात में कोर्ट खुल लाता है।
दिल्ली के जज के बंगले में लाखों के
नोटों के बंडल जले हुए मिलते हैं ।
केश बनता न एफ आई लिखी जाती
काली कमाई समझ आती है ।
कुछ भ्रष्टाचारी जज वकीलों,
दलालों से शासन तंत्र बदनाम है ।
कहने को सभी ईमानदार हरिश्चंद्र है
जो पकड़ गया वो ही तो बदनाम है
भ्रष्टाचार कब कैसे होता
बात समझ में कुछ न आये ।
भ्रष्टाचार एक माध्यम होता
आपस में काम जो करवाये ।
समय किसी के पास नहीं है
इन्तजार नहीं किसी से होता ।
पैसा जो भी खर्च हो जाये
काम समय पर हो जाता है ।
थोड़ा सा पैसा लग जाए
कोई भी मर्जी से दे देता है ।
लेने देने बालों की मर्जी से
काम दोनों का बन जाता है ।
भ्रष्टाचार का रूप हो छोटा
कोई शिकायत नहीं करता है ।
भ्रष्टाचार का रूप बड़ा हो
नीयत में खोट तब होता है ।
कोर्ट कचहरी थानों में ही
भ्रष्टाचार सबसे ज्यादा होता है
भ्रष्टाचार के बिना यहां पर
कोई भी काम नहीं होता है ।
देश भक्ति जन सेवा के नाम से
थानों में सभी प्रताड़ित होते हैं ।
जैसा जो यहां चढ़ावा देता है
वैसे ही छोटा बड़ा केश बनाते हैं ।
अदालत में जहां न्याय मिलता है
भ्रष्टाचार वहां खुलेआम होता है ।
जज के सामने बाबू बैठे रहते
और पेशी बढ़ाने का पैसा लेता है ।
लेने देने बाले दोनों आपस में
एक दूजे को लेते और देते हैं ।
दोनों आपस में खुश होते हैं
क्योंकि दोनों के काम हो जाते हैं ।
किस तंत्र की कैसे बात करूं
भ्रष्टाचार हर जगह फैला हुआ है ।
भ्रष्टाचार एक विभाग खुल जाये
फिर भी भ्रष्टाचार न बंद होना है ।
महाकवि अनन्तराम चौबे अनन्त
जबलपुर म प्र
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