Tuesday, 30 September 2025

कोहराम - डॉ० अशोक

कोहराम - डॉ० अशोक

धुएँ के साये,
बिखरे अरमानों की
करुणा गूँजे।

नदी की लहरें,
लालिमा से बोझिल—
नावें ठहरीं।

टूटे परों से,
अब भी आसमान चूम—
पक्षी तड़पें।

किताब के पन्ने,
आँसू से भीग उठे—
मौन बचपन।

अंगार बरसे,
धरती का दिल झुलसा—
हिरणी विलाप।

मंदिर के आँगन,
घंटी की नाद टूटी—
ईश्वर खामोश।

सन्नाटा पसरा,
ममता की आँखें भरीं—
राख बिखरी।

गली के कोने,
हर दीवार रो उठी—
कोहराम गहरा।

डॉ० अशोक, पटना, बिहार।


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