Monday, 29 September 2025

जेल क्या है कर दो चाहे सर तुम कलम - रशीद अलक़ादरी

जेल क्या है कर दो चाहे सर तुम कलम 
आई लव  मुहम्मद सल्लाहू अल्लेहे वसल्लम 

यकीन मानो जगा दिया उनकी उम्मत को 
ज़िंदा करेंगे देखना फिर एक एक सुन्नत को 
1500 साल पहले फिर जाएँगे 
नफ़रत नहीं मोहब्बत ही फैलाएँगे
कर ले ज़ालिम चाहे जितना जुल्मों सितम 
आई लव मुहम्मद सल्लाहु अल्लेहे वसल्लम

बेटी की पैदाइस पे मनाते  थे कभी सब मातम 
कहीं कोख चीर दी जाती थी कहीं ज़िंदा कर दी जाती थी बेटियां दफ़न 
नबी की आमद से ही हुआ था तब सारा जहाँ रौशन
नफ़रत फैलाने वाले थोड़ा तो करे शरम
आई लव मुहम्मद सल्लाहु अल्लेहे वसल्लम 

बांटा था जिसने हर घड़ी बस मोहब्बत का पैग़ाम 
उस नबी पे करोड़ों दरूद और सलाम
मौत पे भी नसीब हो उनका कलमा हो अल्लाह का बस इतना करम 
आई लव  मुहम्मद सल्लाहू अल्लेहे वसल्लम 

अमीरी ग़रीब का कोई भेद नहीं
कोई छोटा नहीं कोई बड़ा नहीं 
हज़रत बिलाल से दिलाई अज़ान 
बतलाया कोई गोरा नहीं कोई काला नहीं 
आज़ाद कराए कई ग़ुलाम
बेवा लाचार को भी दिलाए हक़ 
बतलाया सब है खुदा के बंदे ज़ुल्म किसी पे नहीं 
दिलाया सबको जहाँ में बराबरी का दर्जा
तो क्यों ना कहे हमारी ज़ुबान क्यों ना लिखे कलम 
आई लव  मुहम्मद सल्लाहू अल्लेहे वसल्लम

रशीद अलक़ादरी,झारखण्ड

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