राजनीति - माया मेहता
प्राचीन महाभारत युद्ध में राजनीति से भिज्ञ हुए
मामा शकुनि के पासों ने घृणा भरे बीज बोए
द्रोपदी चीरहरण से लाक्षागृह तक द्वेष पहुंचाएं
चाहे महाभारत हो या रामायण सत्यमेव जयते।।
कहाॅं नहीं है राजनीति सृष्टि के कण--कण में हैं
'जिसकी लाठी उसकी भैंस' वो चहूं दिशाएं छायें
स्वार्थ,इर्ष्या, मिथ्यात्व स्वजनों से पृथक कराएं
राजनीति से रिश्ते-नातें, समाज में नाम कमाएं।।
लल्लू-चप्पू जो करें पदोन्नति पे पदोन्नति पाएं
नीति-नियमों से जो चलें दफ्तरों में उलझे रहें
हाला़त सिनेमा क्षेत्र के ख्याति पानें निकल पड़ें
नामी वंशज ही चलें,आम आदमी को कौन पूछे।।
नेता तो नेता होता है कुर्सी का लोलुप होता हैं
चुनाव पूर्व अनगिनत वादें मदिरालय महके सारे
देहाती वर्ग लालटेन सहारे शिक्षा में पिछड़े बेचारे
नेता गर नेकी पे चले सोने की चिड़िया राष्ट्र बनें।।
ज़माना बदल रहा है प्यार के रंग में रंगे जा रहे हैं
जात-पात भेद मिटाए पट ब्याह झट तलाक़ करते
राजनीति में युवा आगे मार-धाड़ ख़ून और ख़राबे
अधुरी शिक्षा पाकर वे दर-दर ठोकरें खाते फिरें।
*माया मेहता
मुंबई*

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