हमारे कॉलेज के दिन - उमेश नाग
हमारे कॉलेज के दिन भी क्या अलबेले थें।
पढ़ते लिखते थे उमंगों के साथ,
गंभीरता अध्ययन में भी थी परन्तु
मस्ती भी कम नही थी।
क्लास में प्रोफेसर आते हम
सभी अनुशासन में आ जाते थें।
पढ़ने का मूड नही होता तो चुपचाप
कागज की गोलियां बनाकर एक-दूसरे की झोली में फेंक दिया करते थें।
उसमें कुछ न कुछ मजाकिया तर्क
लिख दिया करतें,
फिर एक दूसरे से आंखें मिलाकर हंसते थें।
उधर प्रोफेसर हमें देखकर क्रोधित होतें,
सजा देते या क्लास बाहर कर अपमानित करतें।
परन्तु हम विद्यार्थियों में एकता बड़ी थी,
सभी एकसाथ क्षमायाचना कर
कक्षा में पुनः सम्मिलित हो जातें
जैसे ही इन्टरवेल की घंटी बजती
भागकर कैन्टिन में जाकर चाय
कॉफी,शीतल पेय और स्नेक्स पीते व खातें।
कॉलेज के सभी मनोरंजक -
गतिविधियों में शामिल होतें,
जीवन में एक हर्षोल्लास व स्फुरित रहते।
कॉलेज के भी क्या अलबेले दिन थे,
हर पल हर क्षण मस्त व स्फुरित रहते थें।
श्रीमती उमेश नाग
राजस्थान

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