आज के युग की यही है सच्चाई,
तुम कौन हो भाई ?
जब तक स्वार्थ है, तब तक अपनापन,
फिर चेहरे पर नकली भाईचारा और दिखावटी अपनापन।
तुम अच्छे हो तब तक ही,
जब तक मेरी कमियाँ तुमने छिपाई,
सच कहा तो रुठ गए सब,
झूठ बोलो तो सब मुस्कुराई।
रिश्ते अब नाप-तोल में बँटते हैं,
सच्चाई सुनकर सब तिलमिलाते हैं,
जो आईना दिखाए, वो दुश्मन कहलाए,
जो झूठ सजाए, वही दोस्त कहाए।
मतलब की डोर से बँधे हैं रिश्ते,
सच्चाई का वजन अब कौन उठाए?
आज का जमाना चाहता है चापलूसी,
सच्चे शब्दों से तो सब कतराए।
नेहा
दिल्ली
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