Friday, 14 November 2025

दुश्मन समझदार था - कवि रंजन शर्मा


दुश्मन समझदार था - कवि रंजन शर्मा 

दुश्मन समझदार था, ये हालत किया है,
तलवार से न मारकर, मोहब्बत किया है।

अकेले उसके बिन जब जीना था मुश्किल,
लत अपनी लगाकर वो नफ़रत किया है।

तैरना भी सीखा हूं , उस दौर यारों,
जब-जब डुबाने की जुर्रत किया है।

हम सोचते रहे  , वो है हमदर्द मेरा,
हक़ीक़त में वो तो , क़यामत किया है।

आँधियों ने चाहा , कि रौंदूँ सफ़र को,
पर मैंने हर तूफ़ाँ में , हिम्मत किया है।

जिस आग से वो , जलाने की सोची,
उसी शोले से ही , बग़ावत किया है।

रंज़िश में "रंजन" का दिल तोड़ उसने,
खुदा की कसम , बे-मुरव्वत किया है।

हंसी देके मुझको , दिल तोड़ा है उसने ,
दुश्मनो से भी बढ़कर, सियासत किया है।

कवि रंजन शर्मा 
बिहार 

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