दुश्मन समझदार था - कवि रंजन शर्मा
दुश्मन समझदार था, ये हालत किया है,
तलवार से न मारकर, मोहब्बत किया है।
अकेले उसके बिन जब जीना था मुश्किल,
लत अपनी लगाकर वो नफ़रत किया है।
तैरना भी सीखा हूं , उस दौर यारों,
जब-जब डुबाने की जुर्रत किया है।
हम सोचते रहे , वो है हमदर्द मेरा,
हक़ीक़त में वो तो , क़यामत किया है।
आँधियों ने चाहा , कि रौंदूँ सफ़र को,
पर मैंने हर तूफ़ाँ में , हिम्मत किया है।
जिस आग से वो , जलाने की सोची,
उसी शोले से ही , बग़ावत किया है।
रंज़िश में "रंजन" का दिल तोड़ उसने,
खुदा की कसम , बे-मुरव्वत किया है।
हंसी देके मुझको , दिल तोड़ा है उसने ,
दुश्मनो से भी बढ़कर, सियासत किया है।
कवि रंजन शर्मा
बिहार

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