धोखा - सीमा 'नयन'
ताटंक छंदा धारित गीत
प्रदत्त विषय - धोखा
बार-बार बस धोखा खाना, अच्छी बात नहीं होती
छला गया कहकर पछताना, अच्छी बात नहीं होती।
माना ठीक सरलता है पर, ठीक नहीं सहते जाना
भय वश बस मन को मार सदा ,विपरीत दिशा बहते जाना।
जीवन में जब अपने मन की ,कभी नहीं कर पाओगे।
अधरों पर तब मुस्कानों के ,कैसे पुष्प खिलाओगे।
हर -क्षण सबके हुक्म बजाना ,अच्छी बात नहीं होती।
अश्रु सदा पीकर मुस्काना ,अच्छी बात नहीं होती।।
अहंकार से बचना लेकिन, स्वाभिमान मत खो देना।
औरों को खुश करने में मत, जीवन में विष बो देना।
धोखे आरोपों पर यदि तुम, हरदम शीश झुकाओगे।
सब अधिकार गंवाकर अपने,दंड सदा ही पाओगे।
हरदम सबका दिल बहलाना ,अच्छी बात नहीं होती।
जो मुख फेरे उसे बुलाना ,अच्छी बात नहीं होती।।
पर उपकार करो जीवन में, किंतु न विस्मृत हो जाए।
बार बार धोखा खाने से,कहीं न मन मृत हो जाए।
अपनी क्षमता से ज्यादा जब ,हरदम बोझ उठाओगे।
मानो बात समय से पहले, जीवन में थक जाओगे।
अपनी कीमत जान ना पाना ,अच्छी बात नहीं होती।
सहज सुलभ सबको हो जाना, अच्छी बात नहीं होती।
सीमा 'नयन'
देवरिया उत्तर प्रदेश

No comments:
Post a Comment