आंखों पर पट्टी - वर्षा रावल
न्याय की देवी जस्टिशिया नही बांधेगी आंखों पर पट्टी ..
तराजू के पलड़े पर समान भाव से न्याय होगा..
आंखें खुली होगी , पीड़ित पक्ष दिखेगा साफ साफ....
जो सत्य होगा उसका ही पलड़ा भारी होगा ...
सच अब बोलेगा.. चीखेगा नही , गिड़गिड़ाएगा नही,...
कलम को खून से भिगोकर जिस तरह ...
उसकी कलम तोड़ ,फाइलें बंद कर दी जाती थी तालों में ...
न्याय की देवी पट्टी बांधे रोती रहती थी
अन्याय की परिभाषा बन कर..
सोख लेती थी काली पट्टी उसके आंसुओं को ...
वो सिर्फ सिंबल हो जाती थी ,खुद मरकर...
और इधर थक हार कर सच चुप हो जाते थे, मौन हो जाते थे ......
ना उसका कहा सुनना, न उसका लिखा देखना ...
एकतरफा जीत को लहराते हुए, झूठ, निकल जाता था शान से...
इसीलिए मौन का मुखर हो जाना हैरत की बात नही ....
पर बेहद दुखद होता है ,झूठ, की
खातिर किसी सच का ,
मुखर से मौन हो जाना....
वर्षा रावल
महाराष्ट्र

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