राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य मंच हमारी वाणी
साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु
विषय...रोजगार - महाकवि डां अनन्तराम चौबे अनन्त
एक पढा लिखा बेरोजगार युवक
रोजगार ढूंढते ढूंढते हो गया परेशान ।
जाति से ब्राह्मण होने के
अभिशाप से था हैरान ।
नेताओ के निजी स्वार्थ ने
आरक्षण कोटे से किया परेशान।
आरक्षण इतना बढ़ा दिया है
कि ब्राह्मणों को नोकरी मिलना
आज के वर्तमान समय में
बहुत ही मुश्किल हो गया है।
जाति में ब्राह्मण होने का
एक फायदा जरुर हुआ ।
जन्म जात ज्ञानी और
बुद्धि में बहुत ही तेज था ।
सारा सच पैसों की कमी और
बेरोजगारी से परेशान था ।
घर में माता पिता पर बोझ से
दिनों दिन बहुत ही हैरान था ।
सच कहूं अचानक मन में
एक युक्ति समझ में आई ।
रोज सुबह से शमशान घाट में
सारा सच मिट्टी में शामिल होने की
बात अचानक ही मन में आई ।
और शहर से आने वाली
शवयात्रा मिट्टी में प्रतिदिन
सारा सच सुबह से दोपहर के बीच
शवयात्रा में शामिल होने लगा ।
आजकल शव यात्रा में
शामिल होने वालों को
एक किताब दी जाती है ।
अपना नाम पता लिखने
की बात कही जाती है ।
उस युवक ने भी किताब में
अपने नाम पते में शमशान घाट
के पहले झोपडी लिखा दिया ।
अपनी झोपडी में राम नाम
सत्य है का बोर्ड लगवा दिया ।
तेरहवीं में खाने के साथ
एक सौ एक रुपया दक्षिणा
देना भी लिखवा दिया ।
अचानक दस बारह दिनों के
बाद एक जजमान झोपडी में
आकर तेरहवीं में आने का
कार्ड देकर आग्रह किया ।
बेरोजगार युवक जजमान
के घर तेरहवीं खाने गया ।
खाने के बाद एक सौ एक रुपया
नगद गिलास सामग्री पा गया ।
इस तरह युवक अब रोज एक
दो तेरहवीं में शामिल होने लगा ।
क्योंकि रोज, रोजी रोटी का
अच्छा इन्तजार जो हो गया ।
एक दिन युवक ने जजमानों से
विनम्रता पूर्वक आग्रह किया।
मैं बेरोजगार हूं ऐसा मत
अपने फायदे के लिए बताया ।
मैं बेरोजगार जाति का ब्राह्मण हूं
दक्षिणा में दान सामग्री तो दीजिए।
दान सामग्री बहुत इकट्ठा हो गई है
इच्छानुसार नगद पैसा दे दीजिए ।
जजमानों को युवक की
यह बात भी पसंद आई ।
दूसरे दिन युवक जजमान के घर
तेरहवीं में पेट भर खाना खाया।
बाद तीन सौ एक रुपया पाकर
मन ही मन बहुत ही हर्षाया ।
इस तरह ब्राह्मण युवक का
यही क्रम प्रतिदिन चलने लगा ।
सुबह से एक दो शव यात्रा में
प्रतिदिन शामिल होने लगा ।
दोपहर में नहाने धोने के बाद
ब्राह्मण भोज में जाने लगा।
इस तरह धर्म के साथ अपना
ब्राह्मण कर्म भी करने लगा ।
इसी तरह अपने दो चार ब्राह्मण
मित्रों को भी शामिल कर लिया ।
पेट भर खाना, खर्च को पैसों का
फायदा भी प्रतिदिन मिलने लगा ।
सारा सच दक्षिणा की रकम से घर
परिवार का खर्च चलने लगा ।
अपने ब्राह्मण जाति धर्म से
समाज में सम्मान मिलने लगा ।
और इस तरह मुक्ति धाम में ही
बेरोजगारी से मुक्ति पा गया ।
हमारे देश में इस तरह लाखों
बेरोजगार , रोजगार घूम रहे हैं ।
माता पिता के कंधों पर बोझ
बनकर आत्म ग्लानि से जी रहे हैं ।
महाकवि डां अनन्तराम चौबे अनन्त
जबलपुर म प्र
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