Friday, 14 November 2025

झूठ - संजय वर्मा "दृष्टि "

 
झूठ - संजय वर्मा "दृष्टि "


जिन्दगी अब तो हमारी मोबाइल हो गई थी
रिंगटोनों से अब तो झूठ की दुकान भी हैरान हो गई थी|
बढ़ती महंगाई मे बैलेंस देखना आदत हो गई थी
रिसीव काल हो तो सब ठीक है मगर
डायल हो तो दिल से जुबां की बातें छोटी हो गई थी|
मिस कॉल मारने की कला तो जैसे झूठ की दुकान हो गई थी
पकड़म -पाटी खेल कहे शब्दों का उसे हम मगर
लगने लगा झूठ की दुकान से शब्दों की प्रीत पराई हो गई थी|
पहले -आप पहले -आप की अदा लखनवी हो गई थी
यदि पहले उसने उठा लिया तो ठीक मगर
मेरे पहले उठाने पर माथे की लकीरे चार हो गई थी|
मिस काल से झूठ बोलना तो आदत सी हो गई थी
बढ़ती महंगाई का दोष उस समय किसे देते मगर
आवाज भी महंगाई की वजह से उधार हो गई थी|
दिए जाने वाले कोरे आश्वासनों की अब भरमार हो गई है
अब रहा भी तो नहीं जाता है मोबाइल के बिना
गुहार करते रहने की तो झूठ की दुकान पर जैसे आदत हो गई है|
अब मोबाइल गुम हो जाने से जिन्दगी चकरा सी गई है
हरेक का पता किस -किस से पूछें मगर
बिना नंबरों के  जिन्दगी झूठ की दुकान सेे गुुमशुदा हो गई है |
संजय वर्मा "दृष्टि "
मनावर (धार )मप्र

चुनाव - महाकवि अनन्तराम चौबे अनन्त

चुनाव - महाकवि अनन्तराम चौबे अनन्त

राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य मंच हमारी वाणी 
साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु 
विषय.... चुनाव 
दिनांक... 11/11/2025
नाम.. महाकवि डा अनन्तराम चौबे अनन्त जबलपुर मध्यप्रदेश 
कविता ...

         चुनाव

हमारे इतने बड़े देश में देखो 
अक्सर चुनाव होते रहते हैं ।
आचार संहिता लगने से ही 
 जनता के काम रूक जाते है ।

सरकारी आफिसों के अफसर
बाबूओं को बहाना मिल जाता है ।
काम भले नही करना चाहते हैं
आचार संहिता का बहाना होता है ।

चुनाव लोकतंत्र की प्रक्रिया है
नेता जनता के प्रति निधि होते हैं।
चुनाव में जीतकर,पंच सरपंच, 
  पार्षद विधायक सांसद बनते हैं।

लोकतंत्र के नाम से सबको
बोट डालने की स्वतंत्रता होती है
जो नाम की ही बस रहती है
सच जनता की मजबूरी रहती है।

चुनाव लड़ने में नेता का
कुछ माप दंड जरूरी है ।
शिक्षा, साफ सुधरी छवि
नेता की होना जरूरी है ।

सांसद या विधायक हो
जनता ही इनको चुनती है ।
चुनाव जीतने के बाद में
फिर मनमानी इनकी होती है ।

राजनैतिक पार्टियां हमेशा
अपना उल्लू सीधा करती हैं ।
सत्ता की कुर्सी पाने चुनाव में
हर हथकंडे इसमें अपनाती है ।

देश में चुनाव में सभी पार्टियां
सत्ता की कुर्सी पाने लड़ती हैं ।
सारा सच है पूरा जोर लगाकर
चुनाव प्रचार पर जोर देती हैं ।

नेता चुनाव में भले लड़ते हैं
हार जीत भी होती रहती है ।
छींटा कसी आपस में करते
नेताओं की मजबूरी होती है ।

सत्ता में जो भी पार्टी आती है
अपने हिसाब से कानून बनाते हैं ।
सारा सच है नेता बनने में इनको
शिक्षा के मापदंड क्यों नहीं होते हैं ।

अनपढ़ भी सांसद, विधायक हैं
मंत्री में शिक्षा का मापदंड नही है ।
शिक्षा से कोई अवरोध न आये
ऐसा कानून भी बनाते ही नही हैं ।

किसी प्रदेश का चुनाव हो देश में
राजनीति सब आपस में करते हैं ।
हाथ जोड़ कर बोट मांगते हैं
जाति धर्म की राजनीति करते हैं।

सांसद विधायक मंत्री बनने में
बी ए की शिक्षा होना जरूरी है ।
सारे सच की बात कहूं चुनाव में
उच्च शिक्षा का मापदंड जरूरी है ।

खानदानी राजनीति चलती है
पिता के बाद पुत्र नेता बनते है ।
कोई कोई तो पति-पत्नी पुत्र बहू
पूरा परिवार चुनाव में खड़े होते हैं।

महाकवि अनन्तराम चौबे अनन्त
    जबलपुर म प्र

जय हो चुनाव - अपर्णा गर्ग 'शिव'

जय हो चुनाव - अपर्णा गर्ग 'शिव'  

राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य प्रतियोगिता मंच 
“हमारी वाणी” 
मेरी कलम मेरी पहचान ✍🏻
        
        “जय हो चुनाव” 

1)आए हैं नेता जी लेकर फिर वादों की बरसात
चुनाव हैं सिर पर, करते बस कुर्सी की बात।

2)पांच बरस बाद, चुनाव की रैली में ही नेता जी नजर आते
नोटों की थाली में,घर घर जाकर खिचड़ी खाते।

3) वोट मांगते, ओढ़ विनम्रता की नकली मुस्कान
जैसे जन्म लिया धरती पर, करने सिर्फ जन कल्याण।

4) कोई मांगता वोट धर्म पर,कोई करता नौकरी का वादा
पक्के घर, बिजली पानी का, हर कोई देता हवाला।

5)मुफ्त की रेवड़ी बांटकर,पक्के कर लिए वोट के दाम
हैं पक्के व्यापारी,वसूल लेंगे,आम के आम गुठलियों के दाम।

6) कभी समोसा, कभी इमरती, छप्पन भोगों से बढ़ती इनकी शान
स्वेटर,कम्बल के संग, कर दे जमीर का भी दान।

7) गिरगिट जैसे रंग बदलते, करते हर पल वादों की बरसात
असल जिंदगी में यारों इनकी, बस रहे काम का ही अकाल।

8) नेता सेर तो अब, मतदाता भी बन गए सवा सेर 
मतदान का करके बहाना, पार्टी पिकनिक पर जाए शाम सवेर।

9) किसकी कुर्सी,कैसा चुनाव,कौन करेगा राज
नहीं किसी को अब चिंता हैं, सजेगा किसके सिर पर ताज।

10) देख लिए नेताजी के रंग, वोट नहीं हैं ये कश्मीर के सेब 
गाल गुलाबी करके मतदाता बोले, भर ली हमने भी अपनी जेब।  
         अपर्णा गर्ग 'शिव' 
             ग्रेटर नोएडा वेस्ट

आज के नेता - नीलम गुप्ता

आज के नेता -  नीलम गुप्ता

तुझे देखा, तेरे वायदे देखे
तू नेता है तूने अपने फायदे देखे
तूने आशिक की तरह बेबफाई निभाई
चुनावके बाद अपनी शक्ल ना दिखाई

भावनाएं हमारी जली 
पूरियां तुमने तली 
हम बिलख रहे थे भूख से
तुमने विदेशी यात्राएं रची 

सबका साथ, सबका विकास
फिर ये नेता क्यों नहीं होते साथ
सत्ता पाने को आतुर है इतने
पक्ष, विपक्ष सब मिला लेते हाथ

चार सौ पार हो या चालीस पार
पहले बदले अपने विचार
राजनीति में ईमानदारी चुनिंदा है
नेतायों से तो गिरगिट भी शर्मिंदा है

बड़े, बड़े वादों से भरमाते है
शराब, शबाब खूब लुटाते है
हमारे पैसों से लाल बत्ती में घूमेंगे 
और हमे ही वीआइपी गिरी दिखाते है

नेताई के लिए कोई डिग्री नही होती
बस गुनाहों को लिस्ट बड़ी,छोटी होती
सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे लगते 
खुद को हरिश्चंद दूसरे को पप्पू समझते 

स्वरचित 
नीलम गुप्ता
उत्तर प्रदेश 

लगता है जल्दी चुनाव आने वाले हैं - अंजना जैन

लगता है जल्दी चुनाव आने वाले हैं - अंजना जैन 

बिहार चुनाव पर एक कविता 
शीर्षक :  लगता है जल्दी चुनाव आने वाले हैं।

द्वार पै खड़े मेरे 
नेता हाथ जोड़े हुए 
लगता है जल्दी
चुनाव आने वाले हैं!

कोई टोपियों में दिखे,
कोई भगवा है धरे
फिर एक बार खादियों के
दौर आने लगे हैं।
लगता है जल्दी
चुनाव आने वाले हैं!

झंडे माला हार पहने 
नारों का सिंगार पहने
तोहमतें एक दूसरे पर 
लगाने लगे हैं !
लगता है जल्दी
चुनाव आने वाले हैं!

नंगे पैर दौड़ के
हाथ दोनों जोड़ के
आम आदमी वो
कहलाने लगे हैं!
लगता है जल्दी
चुनाव आने वाले हैं!

कोई कहे बाबा बाबा
कोई कहीं काबा काबा 
कोई इन्हें देवता या
खुदा बताने लगे हैं !
लगता है जल्दी
चुनाव आने वाले हैं!

रोटी खाएं छप्पर में
बैठ के गरीब घर 
अपने को ये मसीहा
बताने लगे हैं !
लगता है जल्दी
चुनाव आने वाले हैं!

गलियों के दिन फिरे
नेता जहां रुख करें
दूर-दूर तक वहां मैदान 
साफ नजर आने लगे हैं!
लगता है जल्दी
चुनाव आने वाले हैं!

भगवा हरे हरे,
नीले पीले चमकीले
झंडे आसमान तक 
लहराने लगे हैं!
लगता है जल्दी
चुनाव आने वाले हैं!

कोई हाथ हाथ कहे 
कोई लेके फूल चले 
कोई बैठे हाथी पै तो
कोई लालटेन जलाने 
लगे हैं !
लगता है जल्दी
चुनाव आने वाले हैं!

कोई खुदा याद करें 
कोई राम राम कहे
सारे देवता वो
मनाने लगे हैं!
लगता है जल्दी
चुनाव आने वाले हैं!

अंजना विनत करे
जागरूक तुम्हें करे
सही गलत सोच के
निर्णय करो तौल के
क्योंकि !!
अब चुनाव आ ही गए हैं!

✍️अंजना जैन 
स्वरचित मौलिक
उत्तर प्रदेश 

राजनीति - उषा शर्मा

राजनीति - उषा शर्मा  

राजनीति की तो सदा से ही रही हर रीत मनमानी है, 
झूठे वादों इरादों की यहाँ  बहे जैसे नदिया पुरानी है। 

चुनावी दौर लाये  झूठे प्रभोलन, जुमलो की बौछारें, 
नेताओं के रगो में बहे खालिस झूठ बनके रवानी है।

जमीनी  हकीकत से दूर, ये स्वार्थ के  पुल हैं बनाते, 
देश को जो बेचते लहू इनका लगे राष्ट्रद्रोही पानी है।

भूलें राष्ट्रहित पद पाते,पापों व धन की गठरी बांधते, 
ना चिंता समाज की कोई,पाखंडियों की कहानी है।

धर्म की निंदा जात-पात,अपराधी कुटिल दाँव चलाते, 
इंसानियत भूलें,बेचते ईमां इन्हें झूठी शान दिखानी है।। 

जातिवाद, राजनैतिक द्वेषों को मिटाने जन क्रांति लाने 
राष्ट्र सर्वोपरि भाव,शांति सिद्धांत की राजनीति बनानी है।

राजनीति की तो सदा से रही हर रीत रही मनमानी है, 
झूठे वादों  इरादों की यहाँ बहती जैसे नदिया पुरानी है। 

धर्म की भर्त्सना जात-पात,अपराधी कुटिल दाँव चलाते, 
इंसानियत भूलें,बेचते ईमान इन्हें झूठी शान दिखानी है। 

© उषा शर्मा 
जामनगर गुजरात 

मतदान - डॉ० अशोक

 

मतदान - डॉ० अशोक

सूरज मुस्काए,
जनमन गाए साथ —
उत्सव लोकतंत्र।

आशा के दीपक,
हर आँख में चमक —
मतदान पवित्र।

उँगलियों का रंग,
संकल्प की ज्योति —
नया सवेरा है।

धरती की गोद,
खुशियों से महके —
सत्य का मौसम।

सारा सच बोले,
जनता के दिल से —
वो साप्ताहिक है।

छठे सटानजा में,
सत्य की सरगम —
सारा सच झूमे।

ताल मिले लय से,
स्वर में स्वर गूंजे —
भारत का राग।

कलम नृत्य करे,
जनचेतना गाए —
सारा सच अमर।

हर पृष्ठ की धुन,
साहस की बयार —
जनता की आवाज़।

जहाँ सारा सच है,
वहाँ दीप जले —
विश्वास खिले।

मतदान का क्षण,
उमंग का सागर —
आओ बदलें।

सारा सच पुकारे,
“उठो मेरे साथी” —
सत्य की जय हो।

हर वोट अमृत,
हर शब्द प्रभात —
जनता विजयी।

लोक की लय में,
सपनों की गूंज —
भारत मुस्काए।

बदलते पलों में,
विचारों की वर्षा —
सारा सच खिले।

मतदान से जन्मे,
नया युग, नई बात —
जनता की जय हो।

डॉ० अशोक
पटना, बिहार