Tuesday 14 March 2023

आस्था उसी कर्मों की महक - प्रा.गायकवाड विलास

 
































*सारा सच प्रतियोगिता के लिए रचना*
**विषय:आस्था**
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*उसी कर्मों की महक*
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  (छंदमुक्त काव्य रचना)

जहां होती है सच्ची आस्था मन मन में,
उसी मन की प्रार्थनाएं जीवन में सफल होती है।
आस्था बिना साधना और आराधना भी,
सभी के जीवन में निरर्थक तपस्या बन जाती है।

सच्ची आस्था रखकर जो करते है पूजा जीवन में,
उसी के आंगन में यहां खुशियों के फूल खिल जाते है।
जिनकी नीतियां होती है गंगाजल जैसी पवित्र,
उसी के जीवन में ही सुखों की बरसात होती है।

जो करते नहीं कभी भेदभाव इन्सानो इन्सानों में,
वही लोग इस संसार में सच्चे साधक कहलाते है।
जिनके कर्मों में नहीं होती बुराईयां जीवन में,
ऐसे ही लोग इस संसार में समता के दीपक जलाते है।

साधना,आराधना नहीं है हर किसी के बस की बात,
उसी में भी कड़ी परिक्षाएं होती है जीवन में।
जैसे कागज के फूल भी मनकों भा जाते हैं मगर,
उन्हीं फूलों से खुशबू की महक कहां आती है।

मन की आस्था भी निर्मल बहते पानी जैसी होनी चाहिए,
जिस पानी से सारे संसार में सुखों की हरियाली छा जाती है।
जहां आस्था में होता है प्रेम-भाव और ममता भरी छांव,
वहीं पर मानवता और इंसानियत की खुशबू आती है।

जिंदगी का हर पल यहां पर है कितना अंजाना,
फिर भी ये इन्सान कितना अहंकार में डूब गया है।
खुदके भलाई के लिए औरों की छीनकर खुशियां,
वो इन्सानियत का धर्म ही अपने जीवन में भूल गया है।

कौन जानता है यहां पर वो आनेवाला पल?
हरपल वो हमारे जीवन के लिए उधार में मिली एक सौगात है।
इसीलिए भर लो कभी औरों के जीवन में भी खुशियां,
क्योंकि हम सभी की जिंदगी यहां पर कुछ पलों का ही मेहमान है।

जहां होती है सच्ची आस्था मन मन में,
उसी मन की प्रार्थनाएं जीवन में सफल होती है।
कर्मों का नहीं है इस संसार में अंत यहां पर,
उसी कर्मों की महक तो यहां युगों-युगों तक आती है।

प्रा.गायकवाड विलास.
मिलिंद महाविद्यालय लातूर.

      महाराष्ट्र

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