Tuesday 14 March 2023

गंगा - दिलीप कुमार शर्मा













गंगा..

गंगा तुम हो पतित पावनी,
सबको पावन कर देती हो।
जो आचमन करता जल को,
तुम उसके पाप हर लेती हो।
गंगाजल अमृत जल है,
कितना पावन और निर्मल है।
गंगा बह करती कल- कल है।
प्यास बुझाती पल हर पल है।
गंगोत्री से उद्गम होकर,
हिमालय से उतर आती है,
तट के लोगों की प्यास बुझा ,
गंगासागर में मिल जाती है।
स्वर्ग लोक से उतरकर गंगा,
शिव की जटा में समाई थी।
राजा सगर के पुत्रों को तारने,
मृत्यु लोक में आई थी ।
मां जैसा हे रूप तुम्हारा,
गंगा मां तुम्हे कहते हैं ।
हमारे जल में नहाकर सब,
 हर- हर गंगे कहते हैं।

दिलीप कुमार शर्मा दीप

No comments:

Post a Comment