बसंबसंत ऋतु - डाॅ0 उषा पाण्डेय 'शुभांगी'
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बसंत ऋतु आया है, संग मे खुशियाँ लाया है।
नर और नारी का देखो, कैसा मन हर्षाया है।
ठंडी हवा बहने लगी, चारों ओर छाई हरियाली।
उपवन भरे रंग-बिरंगे फूलों से,
देख-देख खुश होता माली।
विद्या की देवी आईं धरा, अज्ञानता दूर भगाया है ।
नर और नारी का देखो, कैसा मन हर्षाया है है।
आया त्योहारों का मौसम, रंग बिरंगा फाल्गुन आया।
राधा-कान्हा रंग लगाते, गोपियों के मन को भाया।
होली, बसंत पंचमी, शिवरात्रि ने, कैसा धूम मचाया है।
नर और नारी का देखो, कैसा मन हर्ष आया है।
फूलों पर तितलियां मंडराती,
कोयला कुहू-कुहू है गाती।
पक्षी चहचहा रहे, गीत खुशी के गा रहे।
रंग बिरंगे पुष्पों ने, बाग खूब सजाया है।
नया और नारी का देखो, कैसा मन हर्षाया है।
गौरैया है फुदक रही,
बसंत का स्वागत कर रही।
हरियाली चहुं ओर है,
मानव भाव विभोर है।
पतंगों ने नभ में देखो, सुंदर दृश्य बनाया है।
नर और नारी का देखो, कैसा मन हर्षाया है।
बसंत बहार आया, मुख सबके मुस्कान आया।
प्रकृति बिखेरे छटा, आनंद चहुंओर छाया।
फूलों और कलियों में, मकरंद भर आया है।
नर और नारी का देखो, कैसा मन हर्षाया है।
मौसम ने ली अंगड़ाई, बहे देखो पुरवाई।
प्रेम से सब गले मिले, आशा की ज्योति जले।
बसंती चुनरिया ओढ़ी धरा ने, सौन्दर्य निखर आया है।
नर और नारी का देखो कैसा मन हर्षाया है।
सूरज नभ में चमक रहा,
नूतन आशा जगा रहा।
आमों पर मंजर दिख रहा
'आ गया बसंत' कह रहा।
कवियों की कलम ने, खूब धूम मचाया है
नर और नारी का देखो कैसा मन हर्षाया है।
आया है बसंत ऋतु, संग में खुशियां लाया है
नर और नारी का देखो कैसा मन हर्षाया है।
डाॅ0 उषा पाण्डेय 'शुभांगी'
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