Tuesday, 25 March 2025

राष्ट्रीय पर्व - डॉ० अशोक


राष्ट्रीय पर्व - डॉ० अशोक
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राष्ट्रीयता से ओतप्रोत,
सांस्कृतिक विरासत है।
यही मातृभूमि को स्वतंत्र रूप से समझने का,
रूप-रंग है,
हम कह सकते हैं कि,
यही हकीकत है,
यही प्राचीन काल से मशहूर,
एक महफ़िल सजाने संवारने वाली,
प्यारी शरारत है।

यह त्योहार नहीं उम्मीद है,
जाति धर्म , सम्प्रदाय और संस्कृति से बिल्कुल भिन्न है।
इसकी वजह से ही,
धार्मिक आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक संचेतना,
की परिकल्पना की जाती है।
नवीन प्रयास और प्रयोग से,
इसकी अहमियत को,
मन मन्दिर में समाहित कर,
नया इतिहास रचने में,
एक ताकत दी जाती है।

सारा सच है तो,
इसकी सोहबत में रहने की तामिल दी जाती है।
नवीन चेतना को जागृत करने में,
सबसे ताकतवर बनकर,
सही मुकाम पर पहुंचाने में,
मदद पहुंचाने की कला सिखाती है।

यही कारण है कि सब लोग,
इसकी सोहबत में रहना पसंद करते हैं।
हमेशा साथ-साथ चलने की,
सौगंध खाकर एक सुखद अहसास दिलाने में,
सबकी खिदमत करते हुए,
नया इतिहास रचने में,
सबकी खिदमत करने में,
आगे बढ़ने की कला सिखाते हैं।

पन्द्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी की बड़ी- बड़ी,
खुशियां भरपूर मिले,
यही हम सब की खुशियों में,
चार-चांद लगाती है।
सही मुकाम पर पहुंचाने में,
सबसे खूबसूरत पहल करने वाले शखिसियत को,
उन्नति और प्रगति पर खरा उतरने में,
सबसे खूबसूरत उपहार बनकर,
नया इतिहास रचने वाली ताकत बन जाती है।

सारा सच एक उन्नत व्यवहार है,
इसकी सोहबत में रहना चाहिए,
यही हकीकत है,
इसकी अहमियत को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है,
यही कारण है कि सब मानते हैं,
यही उम्मीद बढ़ाने का सर्वोत्तम आभार है।

साहित्यिक प्रतिस्पर्धा में,
सारा सच एक खूबसूरत सलीका है।
इसकी वजह से ही,
सब मानते हैं कि इस अभियान को लेकर चलने वाले ही,
इस विधा का जानते हैं,
जो कहलाता सही तरीका है।

डॉ० अशोक,पटना,बिहार।

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