संविधान - ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान'
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है भारत के संविधान की चहुँदिश जयजयकार।
दिया सभी को अपने ढँग से, जीने का अधिकार।
लोकतंत्र की सफल व्यवस्था,
जन जन का विश्वास।
एक सूत्र में बँधे सभी हैं,
कुछ तो है ये ख़ास।
संविधान अपने भारत का, हम सबको स्वीकार।
है भारत के संविधान की चहुँदिश जयजयकार।
संविधान के अनुशासन से
बँधकर चलता देश।
भाषा, पूजा, खानपान के
हैं विभिन्न परिवेश।
रंग बिरंगी संस्कृतियों का यह विस्तृत संसार।
है भारत के संविधान की चहुँदिश जयजयकार।
संविधान ने साफ़ कहा है
मानव मानव एक।
सामाजिक समरसता पनपे
मन हों सबके नेक।
छुआछूत का पहले जैसा नहीं रहा व्यवहार।
है भारत के संविधान की चहुँदिश जयजयकार।
महिलाएँ भी हों शिक्षित,
यह संविधान की देन।
सभी क्षेत्र में आगे बढ़कर
मिले उन्हें सुख चैन।
कुछ वर्षों में रहा सहा भी, छंटना है अँधियार।
है भारत के संविधान की चहुँदिश जयजयकार।
संविधान के अनुपालन से
हर मुश्किल आसान।
निश्चित ही गणतंत्र हमारा
पाएगा सम्मान।
उलझोगे तो ख़त्म न होगा प्रश्नों का अम्बार।
है भारत के संविधान की चहुँदिश जयजयकार।
भारत के इस संविधान से
जन गण मन की जय।
लोकतंत्र हो अमर हमारा
कर लो यह निश्चय।
हर भारतवासी करता है सादर अंगीकार।
है भारत के संविधान की चहुँदिश जयजयकार।
ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान'
शाहजहाँपुर (उ. प्र.)
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