महंगा - संजय वर्मा "दृष्टि "
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जमाना महँगा होगया
इसे देख आम आदमी हो जाता
हक्का -बक्का
खुशियों में नहीं बाँट पाता
मिठाई
जब होती ख़ुशी की खबर
बस अपनों से कह देता
तुम्हारे मुंह में घी शक्कर।
दुःख के आंसू पोछने के लिए
कहाँ से लाता रुमाल ?
दूसरों के कंधे पर सर रखकर
ढुलका देता अपने आँसू।
सरपट दौड़ती जिंदगी
और बढता महंगा जमाना के सामने
खुद को बोना समझने लगा
और आंसू भी छोटे पड़ने लगे
वो पार नहीं कर पाता सड़क
जहाँ उसे पीना है
निशुल्क प्याऊ से ठंडा पानी
शुष्क कंठ लिए इंतजार करता
जब थमेगी रप्तार तो
तर कर लूंगा शुष्क कंठ।
अब उसे सड़क पार करने का
इंतजार नहीं
इंतजार है मंहगाई कम होने का
ताकि बांट सके खुशियों में
अपनों को मिठाई।
संजय वर्मा "दृष्टि "
१२५ ,बलिदानी भगतसिह मार्ग
जिला -धार (म.प्र )
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