विरेंद्र - लौट गए क्रांतिकारी
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भगत सिंह,राजगुरु, सुखदेव, आजाद,
ने की भगवान से ये फ़रियाद,
के भेज दो हमें, फिर से जमीन पर,,
भारत की धरती पे बस जायेंगे कही पर.
बोले भगवन! मजे ले रहे हो स्वर्ग में,
क्यों जाना चाहते हो? बेटा नरक में.
सबका था बस ये कहना,
भारत देश में, हमको रहना.
स्वर्ग की सुविधाएं, नहीं लगती अच्छी,
भारत माँ की गोद, है सबसे सच्ची.
बोले भगवन, करता हूँ एक काम,
स्वर्ग से तुम्हे, देता हूँ विश्राम.
कुछ दिन के लिए, धरती पे घूम आओ,
जनवरी का महीना है, गणतंत्र दिवस मना आओ.
तुम बहुत प्यार करते हो, अपने हिन्दुस्तान से,
पर मेरी एक शर्त हैं, सुनना ध्यान से,
वहाँ चाहे कुछ भी हो, तुम होने दोगे,
किसी भी बात में, तुम दखल ना दोगे.
जब आना हो वापिस मुझे कर लेना याद,
दुबारा आ गए भगत सिंह राजगुरु सुखदेव आजाद.
सबने भारत माँ को किया प्रणाम और माथा टेका,
पास खड़े लोगो ने हैरानी से उनको देखा.
और जोर जोर से हसने लगे,
क्रांतिकारिओं को नाटक मण्डली के कलाकार समझने लगे.
मुस्कुरा के, आगे बढ़ गए क्रांतिकारी,
करने लगे भारत, भृमण की तैयारी.
खुश थे सभी मना रहे है गणतंत्र के 76 साल,
घूम के पुरे देश में, जानना चाहते थे देश के हाल.
कही लग रहे थे नारे, आज़ादी के,
कुछ नारे लगा रहे थे भारत की बर्बादी के.
चाह कर भी वो कुछ ना कर सके,
भगवान् को दिए वचन में, थे बंधे हुए.
देश की जनता को देख, देश के खिलाफ"
आतंवादियो का जाल, नज़र आया साफ़.
पर देख के आर्मी के, वीर जवानो का जोश,
क्रांतिवीरो को, मिला थोड़ा संतोष.
टुटा था पहाड़ कही आया था कही सैलाब,
डूब गए थे लाखो लोग, हालत थी खराब.
कही हो रही थी चोरी कही पे बालात्कार,
कोई कर रहा था, देश के दुश्मन से व्यापार.
भ्रष्टाचार फ़ैल चुका था, देश के हर एक कोने में,
हर नेता लगा था, चैन की नींद सोने में.
चारो तरफ, बस हो रहे थे दंगे और फसाद,
देश के नागरिक ही! कर रहे थे देश को बर्बाद.
अंत में सोचा चलो भारत के भविष्ये से मिलते है,
पड़ते बच्चो को देखे, विद्या के मंदिर चलते है.
पर वहा भी लग रहे थे, देश विरोधी नारे,
तिरंगे का अपमान, कर रहे थे विद्यार्थी हमारे.
निराश परेशान सभी 26 जनवरी को आ गए दिल्ली,
यहाँ आके उनके दिल को, मिली थोड़ी तसल्ली,
चारो और लहरा, रहे थे तिरंगे,
आसमान में, उड़ रही थी पतंगे.
जगह जगह हो रहे थे, 26 जनवरी के कार्येक्रम,
गणतंत्र दिवस देख, दुःख हुआ थोड़ा कम.
कुछ बच्चे, थे उन्ही के वेश में,
अब उन्हें लगा हम है भारत देश में.
पर बहुत जल्दी उनकी, गलतफहमीं हो गयी दूर,
एक बार फिर! क्रन्तिकारी हो गए मज़बूर.
जो तिरंगे, लहरा रहे थे शान से,
अब कूड़े,सड़को पे पड़े थे बेजान से.
लोग तिरंगे को, यहाँ वहा फेंख रहे थे,
क्रांतिकारी लाचारी से, सब देख रहे थे.
सबको आया गुस्सा, नहीं सह सकते थे तिरंगे का अपमान,
गुस्सा उनका देख के,प्रकट हुए भगवान्.
बोले सभी है भगवन! ये नहीं हमारा हिन्दुस्तान,
हमारे देश में नहीं हो सकता, तिरंगे का अपमान.
बोले भगवन, यही है हिन्दुस्तान,
समझाया था मैंने तुम्हे, पर तुम निकले नादान.
ऐसी आजादी से अच्छी थी वो गुलामी,
सोच के मन में ये सबने भगवान् की ऊँगली थामी.
समझ गए भगवान्, अब है वापसी की तैयारी,
भगवान् के साथ, स्वर्ग चले गए क्रांतिकारी.
"वापिस लौट गए क्रांतिकारी"
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