जल
वक्त भी ढूंढने लगा है
सहारों को
जो जल की चाह
अपनो की राह में
जिंदगी के थपेड़ों में
हो चुके गुम।
ऐनक ,लकड़ी के सहारे
डगमगाते कदम
बताने लगे है अब
उम्र को दिशा।
दूरियों से पनपते रिश्ते
भ्रमित हो जाने लगे
अपनों में।
वे रिश्ते ही अब
पाना चाहते सुखद छांव
आसरों के वृक्ष तले।
सच तो है
क्योंकि वे ही दे सकेंगे
आशीर्वाद के मीठे फल
जिन्होंने उन्हें सींचा होगा
सेवा के जल से।
संजय वर्मा "दृष्टि "
१ २ ५ ,शहीद भगतसिंग मार्ग
मनावर जिला -धार (म. प्र .
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