Saturday, 27 September 2025

योग - आरती झा आद्या

 

योग - आरती झा आद्या

पवन प्राण के संग में, साधे योग विचार।
भीतर उठती चेतना, बन जाए उपहार।।

अष्टांगिक पथ में बसा, ऋषियों का यह ध्यान।
योग तपस्या बन गया, जिसने जीता प्राण।।

नभ में जैसे नाद है, देही वैसे ध्यान।
योग उसी का नाम है, जिससे मिलता ज्ञान।।

चित्त वृत्तियाँ थम रही, थमने लगा प्रपंच।
योगी लिए समाधि जब, ध्यान न भटके रंच।।

रात्रि-प्रहर सम हो गया, अंतर का संकल्प।
योग तनय सम रूप ले, करे समाहित कल्प।।

घट-घट में झंकार है, नाद बिना अनुराग।
योग वही जो साध ले, भीतर का हर भाग।।

पलकों पर बैठा हुआ, मौन लिए संन्यास।
योग वही जो तोड़ दे, मोहित-माया-प्यास।।

जैसे निर्झर में बसे, सप्त स्वरूपा तान।
वैसे ही तन-मन जपे, योगमयी पहचान।।

✍️आरती झा आद्या
दिल्ली

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