मर्यादा पुरुषोत्तम राम - रेखा चौरसिया
प्रज्ज्वलित कर दीप मंगल गान का आलाप दो,
शंख नाद , वाद्य - यंत्रों से गगन पर थाप दो,
ये अनहद नाद ,अवसर राम के त्योहार का,
दीपों की है ये श्रृंखला,मन- मीत संग अवतार का।
परमेश्वरी के आगमन से द्वार वंदन की प्रथा,
करते नमन ,और प्रज्ज्वलित ये दीप कहते हैं कथा।
ये राम - रावण युद्ध और संहार का परिणाम थी,
अच्छे - बुरे संघर्ष में ये जीत थी प्रभु राम की।
लौटे अयोध्या ,संग सीते देखती नगरी कहे,
हे मात! इतने दुःख बिनु श्री राम के कैसे सहे?
ये प्रश्न सुन अधीर हो ,लक्ष्मण ने पकड़े थे चरण,
माते को रावण ने किया , अपराध वश ही था हरण,
ज्यों राम ने अब था संभाला भ्रात को बाहु पकड़,
नियति से तुम सर्वज्ञ हो , बंधन नहीं लें तुमको जकड़।
सीते सरल नेत्रों सजल , होती रहीं थी ज्यों विकल,
अग्नि परीक्षा दें चली ,आई अयोध्या धाम पर,
रघुनाथ का,ये दीप उत्सव
दीपिका मंगल सजे,
शंख ध्वनि के नाद संग घंटे नगाड़े भी बजे,
वर्ष चौदह काट कर लौटे हैं जो निज धाम को,
दीपों सजाओ हर हृदय में एक प्रभु श्री राम को।
तीन लोकों में दिवाली पर्व एक एहसास है,
मेरे मन - मंदिर में प्रभु श्री राम का ही वास है।
भक्ति हृदय में प्रेम वाणी नाथ मेरे राम की,
मेरे हृदय बैठे पिता श्री राम माता जानकी।
रेखा चौरसिया,
उत्तर प्रदेश
No comments:
Post a Comment