Thursday, 2 October 2025

धर्म - कंचनमाला ’अमर’(उर्मी)

 
धर्म - कंचनमाला ’अमर’(उर्मी)

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धर्म न बसता मंदिर में ना ही बसता ये मस्जिद में,
बसता है मानवता में ये और मानव के सच्चे मन में।

न पूजा में न रोज़े में,न बसता रीति रिवाजों में,
यह बसता है विश्वासों में और खिलता प्रेम के आंगन में।

जो भेदभाव न करता हो,मानवता का अर्थ समझता हो,
सच्चा अनुयायी धर्मों का जो धर्म का मर्म समझता हो।
 
जो लड़ता धर्म को ढाल बना वो कायर  पागल अक्खड़ है,
उसके कर्मों का लेखा जोखा करनेवाला ईश्वर है।

धर्म जोड़ता मानव को और सच की राह दिखाता है,
सच्चे मन का अंतर्मन ही तो ईश्वर या रब कहलाता है।

स्वरचित व मौलिक 
कंचनमाला ’अमर’(उर्मी)✍️
Delhi 

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