धर्म अधर्म - प्रो. स्मिता शंकर
धर्म अधर्म : जागो, यही है निर्णायक समय
धर्म अधर्म का संघर्ष युगों से चलता आ रहा है। महाभारत से लेकर आज के समाज तक, हर युग में यह सवाल खड़ा होता रहा है—हम किस ओर हैं? धर्म वह है जो सत्य, न्याय, करुणा और सेवा का मार्ग दिखाए, जबकि अधर्म वह है जो स्वार्थ, हिंसा, छल और अन्याय को बढ़ावा दे।
जब धर्म सो जाता है, तो अधर्म का तांडव मचता है। इतिहास गवाह है कि अन्याय, स्वार्थ और हिंसा जब भी बढ़े हैं, तब धर्म ने ही समाज को बचाया है। प्रश्न यह है—क्या हम तमाशबीन रहेंगे या धर्म की मशाल थामेंगे?
धर्म वह शक्ति है जो सत्य, न्याय, करुणा और सेवा का मार्ग दिखाती है। अधर्म वह अंधकार है जो छल, भ्रष्टाचार, नशा और लालच के रूप में समाज को खोखला कर देता है। आज का समय भी इसी कसौटी पर खड़ा है। भ्रष्टाचार, नशा, हिंसा और लालच अधर्म के आधुनिक चेहरे हैं, जो समाज को भीतर से खोखला कर रहे हैं। वहीं ईमानदारी, त्याग, सेवा और संवेदनशीलता धर्म के वास्तविक स्वरूप हैं, जो समाज को सशक्त और जीवंत बनाते हैं।
धर्म अधर्म का यह संघर्ष केवल महाकाव्यों की कहानी नहीं, बल्कि हमारे रोज़मर्रा के जीवन की हकीकत है। हर दिन हमें यह तय करना पड़ता है कि हम किस ओर खड़े हैं—आसान लेकिन विनाशकारी अधर्म की राह पर, या कठिन किंतु उज्ज्वल धर्म के मार्ग पर।
इतिहास उन्हीं को याद रखता है जो धर्म के पक्ष में डटे। समाज बदलने के लिए किसी एक महानायक का इंतज़ार मत कीजिए; हर व्यक्ति का संकल्प ही सबसे बड़ी ताक़त है।
आइए, हम धर्म को कर्म बनाएँ और अधर्म को चुनौती दें। यही भारत का स्वर्णिम भविष्य होगा।यही सच्ची मानवता है, यही राष्ट्रधर्म है, यही समय की सबसे बड़ी जरूरत है।हम धर्म को जीवन का आधार बनाएँ, अधर्म के हर रूप का साहस से सामना करें और देश को नई दिशा दें।
प्रो. स्मिता शंकर
कर्नाटका
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