धोखाधड़ी - राजवाला पुँढीर
इस जमाने में धोखाधड़ी है।
बेईमानों की महफिल बड़ी है।।
यहाँ कोई भी ना है किसी का
बसे रुपया में दम हर किसी का
हर रिश्ते की पैसा ही कड़ी है।
जब फँसता कोई धोखाधड़ी में
तब दिखता ना कुछ उस घड़ी में
जिंदगी में अब जोखिम बड़ी है।
जिंदगी में सँभलकर है जीना
पानी भी तो सोचके ही पीना
रखनी भी साबधानी बड़ी है।
पापियो तुम डरो अब तो पाप से
तुम डरो तो कभी दुर्बल श्राप से
देता है सजा प्रभु भी कड़ी है।
बैठे हर गली में दलाल ही दलाल
करते रहते गरीबों का वो हलाल
हर बात उनकी में धोखाधड़ी है।
वो बख्शते नहीं अपने भी खून को
वो क्यों बढ़ाते रहते हैं मजनून को?
कैसी जग में पैसों की हड़बड़ी है।
नोटों केलिए यार को देते धोखा
चूकें ना वो देखके भी एक मौका
चाहे हाथ पड़जाती हथकड़ी है।
नौकरी लगवाने के बहाने लूटते हैं
नौकरी चाहें जो वो उन्हीं पै टूटते हैं
माला झूँठ इनके गले पड़ी है।
हैक कर लेते वो सबके एकाउंट को
फेसबुक हो या कोई बैंक एकाउंट हो
औफिस इमारत भी बहुत बड़ी है।
भोली सी बेटियों को प्यार में फँसाते
उनको तो अपनी जान कहके बुलाते
पुँढीर कहे मंडप दुल्हन खड़ी है।
राजवाला पुँढीर.
उत्तर प्रदेश

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