सामाजिक माध्यम - मंजू कुशवाहा "अरुणिमा "
सारा सच अंतरराष्ट्रीय हिंदी साहित्य प्रतियोगिता
'हमारी वाणी '
विषय-सामाजिक माध्यम
ख्वाहिश थी की कलम हाथ हो,और किताबों से यारी l
ख्वाहिश भी दम तोड़ रही थी,छूट रही सखियाँ प्यारी ll
छूट रहा बाबुल का अँगना ..छूट रही हँसी ठिठोली l
यादों की संदूक पुरानी,चला रही हिय पर गोली l
दौर पुराना संसाधन कम ,फिर भी हँसकर मिलते थे l
पाकर चिट्ठी बहुत दिनों पर,अधर कुसुम बन खिलते थे ll
शैने शैने वक़्त का पहिया,नई सदी की ओर बढ़ा l
तकनीकी का हाथ थाम कर,सृजन का पर्वत देख चढ़ा ll
यू ट्यूब,ऑर्कुट फेसबुक ,#सामाजिक माध्यम कहलाये l
बच्चे बूढ़े और युवाओं ,का दिल देखो य़ह बहलाए ll
नई पुरानी सभी किताबें, गूगल पे हैं भरी पड़ी l
मिली हैं सखियाँ वही पुरानी ,बातों की फिर लगी झड़ी l
#सामाजिक माध्यम के बल. पर ,दूर दूर की खबरें पाते l
दिखा हुनर सब इसपर कितना ,आजीविका भी कमाते ll
कभी बना वरदान यही तो ,श्रापित भी ये कहलाया l
#समाजिक माध्यम ने अपना,वीभत्स रूप दिखलाया l
अश्लीलता लील रही है,देखो भावी पीढ़ी को l
अंकुश नितांत जरूरी है,घुन लगती इस सीढ़ी को ll
मिलना जुलना सीमित अब तो ,डिजिटल दुनिया कहते हैं l
उपकरणों में खोए बच्चे ..भाव विहीन अब रहते हैं ll
मंजू कुशवाहा "अरुणिमा"
इंदिरापुरम गाज़ियाबाद
स्वरचित एवं मौलिक
मौलिकता प्रमाणपत्र-
मैं मंजू कुशवाहा "अरुणिमा " यह ज्ञापित करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मेरे द्वारा लिखी गयी है l यह किसी भी अन्य स्रोत से नहीं ली गयी l यह पूर्णतः स्व रचित , मौलिक एवं अप्रकाशित रचना है l इसका सर्वाधिकार पूर्णतः मेरे पास सुरक्षित है l
धन्यवाद
नाम- मंजू कुशवाहा "अरुणिमा "
इंदिरापुरम,गाजियाबाद उत्तरप्रदेश

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