Friday, 14 November 2025

झूठ - संजय वर्मा "दृष्टि "

 
झूठ - संजय वर्मा "दृष्टि "


जिन्दगी अब तो हमारी मोबाइल हो गई थी
रिंगटोनों से अब तो झूठ की दुकान भी हैरान हो गई थी|
बढ़ती महंगाई मे बैलेंस देखना आदत हो गई थी
रिसीव काल हो तो सब ठीक है मगर
डायल हो तो दिल से जुबां की बातें छोटी हो गई थी|
मिस कॉल मारने की कला तो जैसे झूठ की दुकान हो गई थी
पकड़म -पाटी खेल कहे शब्दों का उसे हम मगर
लगने लगा झूठ की दुकान से शब्दों की प्रीत पराई हो गई थी|
पहले -आप पहले -आप की अदा लखनवी हो गई थी
यदि पहले उसने उठा लिया तो ठीक मगर
मेरे पहले उठाने पर माथे की लकीरे चार हो गई थी|
मिस काल से झूठ बोलना तो आदत सी हो गई थी
बढ़ती महंगाई का दोष उस समय किसे देते मगर
आवाज भी महंगाई की वजह से उधार हो गई थी|
दिए जाने वाले कोरे आश्वासनों की अब भरमार हो गई है
अब रहा भी तो नहीं जाता है मोबाइल के बिना
गुहार करते रहने की तो झूठ की दुकान पर जैसे आदत हो गई है|
अब मोबाइल गुम हो जाने से जिन्दगी चकरा सी गई है
हरेक का पता किस -किस से पूछें मगर
बिना नंबरों के  जिन्दगी झूठ की दुकान सेे गुुमशुदा हो गई है |
संजय वर्मा "दृष्टि "
मनावर (धार )मप्र

No comments:

Post a Comment