कविता : सरकार - सचिन परवाना
सरकार से कानून की दरकार हमको है,
हो बेटियां महफूज ये पुकार हमको है,
बेखौफ कब घूमेगी यहाँ ये पूछती है वो ,
जरुरत ऐसे माहौल की सरकार हमको है,
कोई नियम ना मानता इस दौर में यहाँ,
कोई नियम ना जानता इस दौर में यहाँ
कुछ तो हो डर कानून का इंसान में यहाँ,
जरुरत ऐसे कानून की सरकार हमको है,
घर से जो निकले बेटियां दिल माँ का घबराये,
जो आने में थोड़ी देर हो तो बाप डर जाए,
माँ बाप भी हो बेफिक्र बेटी की तरफ से,
कुछ आस ऐसे ही विश्वास की सरकार हमको है,
इनको मिले जो आस तो कुछ कर ही जाएँगी,
जाएँगी ये भी चाँद पे, जमी पे तारों को लाएंगी,
फ़िलहाल तो मोहल्ले में चलना हो गया दूभर
इनका न टूटे हौसला उम्मीद ये सरकार हमको है,
आज़ादी के माहौल में आज़ाद नहीं यें,
प्रतिबन्ध इनपे आज भी बेबाक नहीं यें,
कब तक यूँही आज़ादी को ये अपनी तरसेंगी,
बस आपसे उम्मीद अब सरकार हमको है,
सरकार से कानून की दरकार हमको है,
हो बेटियां महफूज ये पुकार हमको है,
बेखौफ कब घूमेगी यहाँ ये पूछती है वो ,
जरुरत ऐसे माहौल की सरकार हमको है,
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सचिन परवाना

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