Monday, 24 November 2025

गम - राजवाला पुँढीर

 

गम - राजवाला पुँढीर

जिंदगी में है गम,सुनलो हमरे सनम
दूरियां बढ़ गयीं, ऐसे हालात थे।
दिल्लगी में सनम,हुआ हमको भरम
तालियां बज गयीं,ऐसे हालात थे।।

जो ना सोचा कभी आज वो होगया
क्या भाग्य हमारा आज ही सोगया?
खामियाँ दिख गयीं ऐसे ख्यालात थे।

नींद में भी हमें झटके आने लगे
भीड़ में भी हमें वो बेगाने लगे
चिट्ठियां फटगयीं ऐसे अवसाद थे।

प्यार के बदले में हमको गम मिला
जोति के बदले में हमको तम मिला
बोलियां चुभ गयीं ऐसे सवालात थे।

कभी होती खुशी कभी होता है गम
कभी दिखती किरण कभी होता है तम
ये अँखियाँ रोगयीं ऐसे जज्बात थे।

कोई भी अपना तो नहीं लगता हमें
कोई भी सपना तो नहीं दिखता हमें
गालियाँ मिल रहीं ऐसे हवालात थे।

हम भी टूटने लगे गम इतना मिला
अब तो भूलने लगे हम शिकवा गिला
डोरियां कट गयीं ऐसे आलात थे।

ऐसा लगता हमें सब चिढ़ाने लगे
अपने खुशियों भरे पल दिखाने लगे
ये अँखियाँ भी झुक गयीं बकवाद थे 
  
जिंदगी मर गयी हम भी मुरझा गये
वंदिगी जुड़ गयी हम भी भगवा भये
कापियाँ लिख गयीं ऐसे आघात थे।

अजनबी हम तो बनगये अपनों केलिए
 चमकती शान बनगये गैरों केलिए
डालियां झुक गयीं ऐसे बरसात थे।

लिखती पुँढीर है जिंदगी का सफर
बँधती न धीर है बाँध टूटा सबर
बादिया लिख गयीं ऐसे सौगात थे।

स्वरचित
कवयित्री राजवाला पुँढीर
उत्तर प्रदेश

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