Wednesday, 17 December 2025

घटिया - कवयित्री राजवाला पुंढीर

घटिया  - कवयित्री राजवाला पुंढीर 

घटिया जमाना और
 घटिया हैं काम
अब क्या होगा राम।

नातों का वो जाने मोल नहीं
आठों पर भी मीठे बोल नहीं
सबका करें पल में अपमान
 वो पाप करते तमाम।

अपने को भगवान मानते हैं
दुर्बल पर बंदूक तानते हैं
सोचें नहीं क्या होगा अंजाम
जीना करते हराम।

सोच भी घटिया नजर बुरी है
हाथ में लठिया बगल छुरी है
डर से न कोई हिलाता जुबान
पग पड़ करें राम राम।

जो भी उनका होता जुनून है
उनका बनाया हर कानून है
सबको बनाके वो रखें गुलाम
गाली तकिया कलाम।

भाई भाई की रोटी छीने
करतीं बोलियां छलनी सीने
ना लगती कभी जुबां पै लगाम
छीने भैया से दाम।

कहीं पे नजरें बांधी टकटकी
किसी की देखी आती लड़की
पूछते हैं उनसे उनका नाम
फिर पूछते हैं गाम।

कहां सो गए हो तुम त्रिपुरारी 
संकट आया है जग पै भारी 
हो जाएगी ये दुनिया बदनाम
तब क्या होगा राम।

इज्जत आबरू ये नाही जानें
हर बेटी बहू को आते खाने
पल में करदे ये मान नीलाम 
इनकी जन बसे दाम।

हर नशे के ये होते हैं आदी
करते रोज हैं बड़ी बर्बादी
सोचें नहीं क्या होगा अंजाम
खाएं रोटी हराम।

पुंढीर कहे ये होते हैं नीच
बनें बादशाह हैं सबके बीच
सबको दिखाते हैं अपनी शान
है बहुरूपिया नाम।

स्वरचित 
कवयित्री राजवाला पुंढीर 
एटा उत्तर प्रदेश

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