हमारीवाणी* प्रतियोगिता हेतु *सुप्रीम कोर्ट*
सपना था मेरा सुप्रीम कोर्ट में जा कर
हाजिरी लगाने व दलीलें देने का,
मुवक्किल की बातों को चाय की चुस्की के संग
विस्तार रूप से सुनने का।
तारीख़ पर तारीख़ लेने का,
काला कोट, सफेद बो पहन कर
सुप्रिम कोर्ट की वकील साहिबा के रूप मे कोर्ट-कचहरी जाने का।
मामा जी की वकालत वाली किताबों को
हम गर्मी की छुट्टियों में दिन-रात पढ़ा करते थे,
भाई-बहन, सखा-सहेली के मध्य
हुए आपसी मत-भेद को
कभी-कभी हम न्याय प्रिय ज़ज
बन कर सुना करते थे।
किसी की पैरवी जब अलग अंदाज में
आइस्क्रीम वाली रिश्वत पर कर दिया करते थे,
शादी के पहले सभी सहपाठी हमें
वकील साहिबा कहा करते थे।
सपने हुए चूर कोर्ट-कचहरी के,
हम हो गए कोसों दूर कोर्ट-कचहरी से।
ख्वाहिशों की किताबें
बंद आलमारी में सज गए,
वकील तो हम ना बन सके परंतु
वकील साहब के आँगन की छोटी बहू बन गए।
सुप्रिम कोर्ट की दलीलें अब हर रोज़ सुना करते हैं,
दफ़्न अपने ख़्यालों को अपने बच्चों में बुना करते हैं।
विनीता बरनवाल
मिर्जापुर उत्तर प्रदेश
विनीता बरनवाल
( उत्तर प्रदेश )

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