Monday, 1 December 2025

अधिकार - अलका जैन आनंदी


अधिकार - अलका जैन आनंदी

औरों के लिए जीना सीखे
अपने लिए जीना क्या जीना
 जीव, पशु, पक्षी भी जीते हैं
जो पर हित सेवा करें मानक सच्चा
 दीन दुखी की मदद असल में मदद है
वृक्ष फलों को देते ही रहते
अंत लकड़ी तक जल जाती है
नदियां बहती ठंडक दे
जीवन दायिनी जल देती हमको 
औरों के लिए जीना सीखे
*अधिकार* तो सबको पता है
 हमें क्या मिलना है
 कभी अपने कर्तव्य भी पूरे किए
 घर के प्रति,समाज के प्रति बच्चों के प्रति
 अपने प्रेम प्यार निष्ठा को जगाया क्या??
अपने मन से पूछो अधिकार चिलाने वाले
दिल में क्या रखते करुणा दया
पथ में जाते मिले जो घायल
 मरहम बन जाना फौरन
 जब जिससे तुम जहां मिलो
प्रेम प्यार ही बांटो जग में
मानवता को वर लो साथी
सुख शांति को पाओगे
 भूखे को दो रोटी दे दो
 दीन दुखी को देना कपड़े 
जिम्मेदारी समझो अपनी 
करो कर्तव्य पूरे 
*अधिकार*, अधिकार को छोड़ो 
 जो मांगे अधिकार को
 उनके जीवन को धिक्कार

  अलकाजैनआनंदी
स्वरचित, दिल्ली

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